SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 224 // 1 - 9 - 0 - 0 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन केवलिसमुद्घात की प्रक्रिया में औदारिक-काययोगी केवलज्ञानी साधु महात्मा सर्व प्रथम प्रथम समय में अपने शरीर के प्रमाण का उपर एवं नीचे अलोक पर्यंत, चौदह राजलोक परिमाण दंड बनाता है... तथा द्वितीय समय में औदारिक मिश्र काययोगी वह केवलज्ञानी अपने शरीर के प्रमाण का तीरच्छा अलोक पर्यंत विस्तृत कपाट जैसा कपाट (दिवार) बनाता है... तथा तृतीय समय में कार्मणकाययोगी वह केवलज्ञानी अन्य दो दिशाओं में तिरच्छा अलोक पर्यंत विस्तृत अन्य एक कपाट (दिवार) बनाता है... यहां तक तीन समय की प्रक्रिया के द्वारा मंथान का आकार बन चूका है... मंथान याने दहिं की छाछ बनने वाला रवैया-मंथान-झंगणी... यहां ततीय समय में आत्मप्रदेश अनश्रेणी गमन करतें हैं अत: संपूर्ण लोक प्रायः भरा गया है... मात्र लोकांत भाग में जो जो निष्कुट हैं वे अभी खाली रहे हुए है... अब चौथे समय में कार्मणकाययोगी भगवान् इन निष्कुटों में भी आत्म प्रदेश भर देते हैं... अर्थात् प्रथम के चार समयों में केवलज्ञानी अपने आत्मप्रदेशों को फैलाकर संपूर्ण लोक में छा जातें हैं... केवलिसमुद्घात का काल मात्र आठ (8) समय है, प्रथम के चार समयों में क्रमश: संपूर्ण लोक में फैल जाते हैं, और अंतिम के चार समयों में क्रमशः आत्मप्रदेशों का संहरण करते हुए पुनः अपने शरीर में समा जातें हैं... अब पांचवे समय में निष्कुटों में से आत्मप्रदेशों का संहरण करतें हैं, छठे समय में मंथान का संहरण करते हैं, सातवे समय में कपाट का संहरण करते हैं, एवं आठमे समय में दंड का संहरण कर के शरीरस्थ हो जाते हैं... अर्थात् पश्चानुपूर्वी क्रम से आत्म प्रदेशो का संहरण करते हैं... षष्ठ समय में मंथान का उपसंहार करती वख्त औदारिकमिश्रकाययोग होता है... आठ समय के केवलिसमुद्घात में... प्रथम समय दंड औदारिक-काययोग द्वितीय समय कपाट औदारिकमिश्र-काययोग तृतीय समय मंथान कार्मण काययोग चतुर्थ समय संपूर्ण लोक कार्मण काययोग पंचम समय निष्कुट संहरण कार्मण काययोग षष्ठ समय मंथान संहरण औदारिकमिश्र काययोग सप्तम समय कपाट संहरण औदारिकमिश्र काययोग अष्टम समय दंड संहरण औदारिक काययोग इस प्रकार केवलज्ञानी समुद्घात करने के बाद योग निरोध की प्रक्रिया करतें हैं... वह इस प्रकार...
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy