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________________ . श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 9 - 0 - 0 215 यहां यह प्रश्न उठेगा कि- सभी तीर्थंकरो को छद्मस्थ श्रमण काल में क्षायिकभावों के हेतुभूत तपश्चर्या भी समान होती है ? या अल्पाधिक ? इस आशंका को दूर करने के लिये नियुक्तिकार महर्षि तीन गाथा कहतें हैं... नि. 277/278/279 सभी तीर्थंकरो की तपश्चर्या निरूपसर्ग कही गई है, किंतु श्रमण भगवान् महावीर परमात्मा की तपश्चर्या उपसर्ग सहित कही गइ है... दीक्षा ग्रहण के समय चौथा मन:पर्यवज्ञान जिन्हें उत्पन्न हुआ है ऐसे चार ज्ञानवाले देवपूजित तीर्थंकर प्रभु निश्चित हि अशेष घाति कर्मो का विच्छेद कर के केवलज्ञान पाकर मोक्ष पद पाने वाले हि है... तो भी बल एवं वीर्य-पराक्रम में अपूर्व पुरुषार्थ करते हुए तपश्चर्या में सतत उद्यम करते हैं... यदि तीर्थंकर परमात्मा भी तपश्चर्या में सदा उद्यम करते हैं, तो फिर अन्य सामान्य जीव ऐसे साधु-साध्वीजी म. को सुविहित आचरणा करने के लिये तत्पर बनने के साथ सकल दुःखों के क्षय में हेतुभूत. तपश्चर्या में विशेष उद्यम करना हि चाहिये.. क्योंकि- यह मनुष्य जन्म अनेक संकट-उपद्रवों से भरपूर है, इत्यादि... अध्ययनार्थाधिकार कहकर अब नियुक्तिकार महर्षि उद्देशार्थाधिकार कहतें हैं... नि. 280 (1) चर्यते इति चर्या-आचरणा... इस प्रथम उद्देशक में श्री वर्धमान स्वामीजी के विहार का अधिकार है... (2) शय्या = वसति (उपाश्रय) द्वितीय उद्देशक में श्री महावीर स्वामीजी ने जिस प्रकार की शय्या याने वसति का आश्रय लिया था, उस का अधिकार है... (3) परीषह याने बाइस प्रकार के अनुकूल एवं प्रतिकूल कष्ट-संकट.... श्री महावीर स्वामीजी को श्रमण जीवन में जो कोइ अनुकूल एवं प्रतिकूल उपसर्ग तथा परीषह आये उन को प्रभुजी ने समभाव से सहन कीया... क्योंकि- मोक्षमार्ग में अविचल रहने के लिये एवं कर्मो की निर्जरा के लिये परीषह सहन करने चाहिये... अत: इस तीसरे उद्देशक में परमात्मा को आये हुए परीषह एवं उपसर्गों का अधिकार है... (4) आतंक याने क्षुधा जन्य पीडा की चिकित्सा याने योग्य सदुपाय... अर्थात् इस चौथे उद्देशक में श्रमण परमात्मा महावीर स्वामीजी ने क्षुधा की वेदना को शांत करने के लिये विशिष्ट अभिग्रह से प्राप्त निर्दोष आहार को जिस प्रकार से ग्रहण कीया था,
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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