________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 8 - 5 - 1 (229) // 151 - यदेतत् भगवता प्रवेदितं, तदेव अभिसमेत्य सर्वतः सर्वथा सम्यक्त्वमेव समभिज्ञाता, यस्य भिक्षोः एवं भवति - स्पृष्टः अबल: अहमस्मि, न अलं अहमस्मि, गृहान्तरसङ्क्रमणं भिक्षाचर्यां गमनाय, तस्य एवं वदतः परः अभ्याहृतं अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा आहृत्य दद्यात्, सः पूर्वमेव आलोकयेत् - हे आयुष्मन् ! न खलु मां कल्पते अभ्याहृतं अशनं वा 4 भोक्तुं वा पातुं वा, अन्यत् वा एतत्प्रकारम् // 229 // ' III. सूत्रार्थ : जो भिक्षु दो वस्त्र और तीसरे पात्र से युक्त है उसे यह विचार नहीं होता हे किमैं तीसरे वस्त्र की याचना करूंगा। यदि उसके पास दो वस्त्रों न हो तो वह निर्दोष वस्त्र की याचना कर लेता है। यह सब भिक्षु के आचार है। जब उसे यह प्रतीत हो कि- अब हेमन्त काल, शीत काल व्यतीत हो गया और ग्रीष्म काल-उष्णकाल आ गया है, तब वह जीर्ण फटे पुराण वस्त्रों का त्याग कर दे। यदि शीतादि पड़ने की संभावना हो तब साधु वह वस्त्र अपने पास रखे कि- जो अधिक जीर्ण नहीं हआ है, तथा जब शीत-ठंड न हो तब एक चादर मात्र वस्त्र अपने पास रखे या मुखवस्त्रिका और रजोहरण को छोड कर अवशिष्ट अशेष सभी वस्त्र का त्याग करके अचेलक बन जावे। वह भिक्षु लाघवता प्राप्त करने के लिए वस्त्रों का परित्याग करे। वस्त्रपरित्याग से काय क्लेश रूप तप होता है। भगवान महावीर ने जिस आचार को प्रतिपादन किया है, उसका विचार करे और सर्व प्रकार तथा सर्वात्मभाव से सम्यक्त्व या समत्व-समभाव को जाने। जिस भिक्षु को इस प्रकार का अध्यवसाय होवे है कि- मैं रोगादि के स्पर्श से दुर्बल होने से एक घर से दूसरे घर में भिक्षा के लिए जाने में असमर्थ हूं। उसकी इस वाणी को सुनकर या भाव को समझकर यदि कोई सद्गृहस्थ जीवों के उपमर्दन से सम्पन्न होने वाले अशनादि आहार साधु के लिए बनाकर या अपने घर से लाकर साधु को दे या उन आहारादि को ग्रहण करने के लिए साधु से विनंति करे, तो साधु पहले ही उस आहार को देखकर उस गृहस्थ से कहे कि- हे आयुष्यमान ! मुझे यह लाया हुआ तथा हमारे निमित्त बनाया हुआ यह सदोष आहारादि को स्वीकार करना नहीं कल्पता। अतः मैं इसे ग्रहण नहीं करुंगा...इत्यादि... IV टीका-अनुवाद : तीन वस्त्रवाले स्थविर कल्पवाले साधु हो, या जिनकल्पवाले साधु हो... किंतु दो वस्त्रवाले तो निश्चित हि जिनकल्पवाले या परिहारविशुद्धिकल्पवाले या यथालंदिक या प्रतिमा को वहन करनेवाले कोइ भी हि हो... इस सूत्र में दो कल्प-वस्त्रवाले जिनकल्पवाले साधु