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________________ 150 ॥१-८-५-१(२२९)म श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 8 उद्देशक - 5 ॐ ग्लानभक्तपरिज्ञा // चौथा उद्देशक कहा, अब पांचवे उद्देशक का प्रारंभ करते हैं... यहां परस्पर यह संबंध है कि- चौथे उद्देशक में गार्द्धपृष्ठादि बालमरण का विधान प्रसंगोपात विहित है ऐसा कहा है, अब यहां पांचवे उद्देशक में उससे विपरीत याने ग्लानभाववाले साधु को चाहिये कि- वे भक्तपरिज्ञा नाम के अनशन को हि स्वीकार करें... इत्यादि... अतः इस संबंध से आये हुए इस पांचवे उद्देशक का यह प्रथम सूत्र है... I सूत्र // 1 // // 229 // 1-8-5-1 जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिए पायतइएहिं तस्स णं नो एवं भवइ - तइयं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाइज्जा, जाव एवं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गिय, अह पुण एवं जाणिज्जा, - उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे, अहा परिजुण्णाई वत्थाई परिट्ठविज्जा, अहापरिजुण्णाइं परिठ्ठवित्ता अदुवा संतरुत्तरे अदुवा ओमचेले अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले, लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमण्णागए भवइ। जमेवं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमिच्चा सव्वओ सव्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया, जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-पुट्ठो अबलो अहमसि, नालमहेमंसि, गिहतरसंकमणं भिक्खायरियं गमणाए, से एवं वयंतस्स परो अभिहडं असणं वा 4 आहटु दलइज्जा, से पुव्वामेव आलोइज्जा - आउसंतो ! नो खलु मे कप्पइ अभिहडं असणं 4 भुत्तए वा पायए वा अण्णे वा एयप्पगारे // 229 // II संस्कृत-छाया : यः भिक्षुः द्वाभ्यां वस्त्राभ्यां पर्युषितः पात्रतृतीयैः, तस्य न एवं भवति-तृतीयं वस्त्रं याचिष्ये, सः अथ एषणीयानि वस्त्राणि याचेत, यावत् एवं खलु तस्य भिक्षोः सामण्यम् / अथ पुन: एवं जानीयात् - उपातिक्रान्तः खलु हेमन्तः, गीष्मः प्रत्युत्पन्नः, यथा परिजीर्णानि वस्त्राणि परिष्ठापयामि, यथापरिजीर्णानि परिष्ठाप्य अथवा सान्तरोत्तर अथवा अवमचेल: अथवा एकशाटकः, अथवा अचेलः, लाघविकं आगमयमानं तपः तस्य अभिसमन्वागतं भवति
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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