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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-8- 2 - 4 (218) // 125 - यदि इस पर भी वह गृहस्थ न माने-क्योंकि- कई पूंजीपति गृहस्थों को अपने वैभव का अभिमान होता है। वे चाहते हैं कि- हमारे विचारों को कोई ठुकरावे नहीं। जिन्हें वे अपना गुरु मानते हैं, उनके प्रति भी उनकी यह भावना रहती है कि- वे भी मेरे विचारों को स्वीकार करे, मेरे द्वारा दिए जाने वाले पदार्थों या विचारों को स्वीकार करे, यदि कोई साधु अकल्पनीय वस्तु को स्वीकार नहीं करता है, तो उनके अभिमान को ठेस लगती है और वे आवेश में आकर अपने पूज्य गुरु के भी शत्रु बन जाते हैं। वे साधु को मारने-पीटने एवं विभिन्न कष्ट देने लगते हैं। ऐसे समय में भी मुनि को अपने आचार पथ से विचलित नहीं होना चाहिए। मुनि को पदार्थों के लोभ में आकर अपनी मर्यादा को तोड़ना नहीं चाहिए और कष्टों से घबराकर भी संयम से विमुख नहि होना चाहिए। परन्तु हर परिस्थिति में संयम में संलग्न रहते हुए, उन्हें आचार का यथार्थ स्वरूप समझाना चाहिए। इस विषय में कुछ और अधिक बताते हुए सूत्रकार महर्षि आगेका सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 4 // // 218 // 1-8-2-4 से समणुण्णे असमणुण्णस्स असमणं वा जाव नो पाइजा नो निमंतिजा नो कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे त्तिबेमि // 218 // II संस्कृत-छाया : सः समनोज्ञः असमनोज्ञाय अश्रमणं वा यावत् न प्रदद्यात्, न निमन्त्रयेत् न कुर्यात् वैयावृत्त्यं परं आद्रियमाणः इति ब्रवीमि // 218 // III. सूत्रार्थ : समनोज्ञ साधु अमनोज्ञ साधु को आदर-सम्मान पूर्वक आहार आदि नहीं दे और उसकी वैयावृत्य भी न करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु गृहस्थों के पास से या कुशील वालों के पास से अकल्पनीयता के कारण से आहारादि ग्रहण न करें तथा समनोज्ञ वह साधु अन्य असमनोज्ञ साधुओं को पूर्वोक्त आहारादि न देवे... तथा यदि वे असमनोज्ञादि अतिशय आदर वाले हो; तो भी आहारादि ग्रहण करने के लिये निमंत्रण न करे, या अन्य कोइ प्रकार से उनकी वैयावच्च (सार संभाल) न करें... इति तथा ब्रवीमि शब्द अधिकार परिसमाप्ति के सूचक है... किस प्रकार का साधु किस प्रकार के साधुओं को आहारादि दे, यह बात अब सूत्रकार
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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