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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 8 - 0 - 0 93 - जो मनुष्य (साधु) इसी जन्म में हि मोक्ष पानेवाला है; वह हि अंतिम मरण को स्वीकारे अर्थात् भक्तपरिज्ञादि तीन में से कोई भी एक प्रकार से हि शरीर का परित्याग करता है... किंतु अन्य वैहानसादि बालमरण का स्वीकार नहि करतें... अतः यहां कहे गये भक्तपरिज्ञादि तीन प्रकार के मरण हि भावमोक्ष है... यहां कहे गये इन तीनों प्रकार के मरण में जो विभिन्नता है वह चेष्टा, भेद एवं उपाधि याने उपकरणों की विभिन्नता से तीन प्रकार हुए हैं... . नि. 264 अब इसी हि भाव-मोक्ष स्वरूप मरण का स्वरूप सपराक्रम और अपराक्रम के भेद से दो प्रकार कहतें हैं; पराक्रम के साथ जो मरण हो, वह सपराक्रम मरण... और इससे जो विपरीत वह अपराक्रम मरण... जैसे कि- अपराक्रम मरण जंघाबल परिक्षीण होने पर जो भक्तपरिज्ञा, इंगितमरण एवं पादपोपगमन के भेद से त्रिविध होता है, और सपराक्रम मरण भी भक्तपरिज्ञादि भेद से तीन प्रकार से है... पुन: व्याघातिम और अव्याघातिम भेद से दो प्रकार से है... व्याघात याने सिंह, व्याघ्र आदि से... और अव्याघात याने प्रव्रज्या, सूत्रार्थ ग्रहण, आदि के द्वारा आनुपूर्वी याने अनुक्रम से आयुष्य क्षय होने पर होनेवाला मरण... यहां जो "आनुपूर्वी" कहा है, वहां यह परमार्थ है, कि- व्याघात से या आनुपूर्वी से सपराक्रमवाले या अपराक्रमवाले साधु को जब मरणकाल समीप में हो, तब सूत्रार्थ को जाननेवाले साधु अपने जीवन के अंत काल को जानने के कारण से समाधिमरण हि प्राप्त करें... अत: वे साधुजन भक्तपरिज्ञा या इंगितमरण या पादपोपगमन अनशन के द्वारा जिस प्रकार समाधि हो वैसा हि पंडितमरण करें... किंतु वैहानसादि बालमरण न करें यह यहां सारांश है... - नि. 265 अब सपराक्रम मरण दृष्टांत के द्वारा कहतें हैं... यह मरणादेश का दृष्टांत आचार्यों की परंपरा एवं शास्त्र से आया हुआ वृद्धवाद इस प्रकार है कि- यह सपराक्रम मरण ऐतिह्य याने प्राचीन-वर्तमान कालीन है यहां श्री वज्रस्वामीजी का दृष्टांत जानीयेगा... जिस प्रकार श्री वज्रस्वामीजी ने पादपोपगमन अनशन स्वीकार करके मरण को प्राप्त हुए थे... यह सपराक्रम मरण अन्यत्र भी मोक्षगामी साधु में आयोजित करें... यह गाथार्थ है... और भावार्थ श्री वज्रस्वामीजी की कथा से जानीयेगा... और वह कथा प्रसिद्ध हि है... जैसे कि- आर्यश्री वज्रस्वामीजी कान (कर्ण) के उपर रखा हुआ शृंगबेर याने सुंठ का टुकडा जब प्रमाद से भूल गये तब मरणकाल नजदीक है; ऐसा जानकर पराक्रमवाले हो कर रथावर्तगिरि के उपर पादपोपगमन अनशन का स्वीकार किया था इत्यादि...
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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