________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-2-1-1(3) 47 यहां यह पदार्थ हुआ, अब वाक्यार्थ कहतें हैं... काल एवं अकाल में कार्य करनेवाला... यहां काल और अकाल पद की चतुर्भगी होती है... इन चार विकल्पों में से तीन अशुभ विकल्प इस प्रकार हैं... 1. कार्य काल में कार्य नहिं करता, किंतु अकाल में कार्य करता है... 2. कार्य काल में कार्य करता है और अकाल में भी कार्य करता है... कार्य काल में कार्य नहिं करता है और अकाल में कार्य भी नहिं करता... 4. . कार्य काल में कार्य करें और अकाल में कार्य न करें... यहां उचित तो यह चतुर्थ भंग हि है, किंतु कुविकल्पों से विनष्ट मनवाला वह मनुष्य काल एवं अकाल का विवेक नहिं रख शकता... जैसे कि- प्रद्योतन राजा ने मरण प्राप्त पतिवाली सती स्त्री मृगावती को ग्रहण काल छोडकर उनके नगर को किल्ले से सुरक्षित करने के बाद ग्रहण करने की इच्छा की... इत्यादि यह कालाकालसमुत्थायी-पद का अर्थ हुआ... और जो सम्यक् कालोत्थायी है वह जीव कार्य के समय में परस्पर बाधा न हो वैसे सभी क्रियाएं करता है.... कहा भी है कि- किसान आठ महिने ऐसा कार्य करे कि- चार महिने सुख से रह शके... और पहली उम्रमें मनुष्य ऐसा कार्य करे कि- अंतिम उम्रमें सुख से रह शके... : धर्माचरण के विषय में विशेष बात यह है कि- जिस प्रकार मृत्यु को कोइ काल या अकाल नहि है, वैसे हि धर्मानुष्ठान के लिये भी कोइ काल या अकाल नहि है... - अब प्रश्न होता है कि- मनुष्य कालाकालसमुत्थायी क्यों है ? उत्तर- मनुष्य संयोग का अर्थी है... संयोग याने धन, धान्य, सुवर्ण, दास-दासी आदि द्विपद, हाथी, घोडे, बैल आदि चतुष्पद, राज्य और पत्नी आदि के संयोग की इच्छावाला-प्रयोजनवाला, अथवा अच्छे शब्दादि विषयों का संयोग मात-पितादि को हो ऐसी इच्छावाला यह जीव कालाकालसमुत्थायी होता है... तथा अर्थ याने धन-धान्य-रत्न-कुप्य आदि का लोभी यह जीव मम्मण श्रेष्ठी की तरह कालाकालसमुत्थायी होता है... वह इस प्रकार- धन कमाने में समर्थ ऐसी यौवन उम्र बीत जाने पर भी, जलमार्ग और भूमीमार्ग के द्वारा विभिन्न देशों मे भेजे हुए जहाज एवं वाहन के द्वारा बहोत धन-समृद्धि प्राप्त हो जाने पर भी मम्मण-श्रेष्ठी बरसाद की ऋतु में (सात दिनरात पर्यंत निरंतर मुशलधारा से हुए बरसाद से सभी प्राणी-मनुष्यों को आवागमन = संचरण की इच्छा मात्र भी न हो ऐसे बरसाद के दिनों में) महानदी के जलपूर में बहते आते हुए चंदन के काष्ठ = लकडीयां को ग्रहण करने की इच्छावाला मम्मणशेठ भोगोपभोग के समय में भी मात्र धन की प्राप्ति में लगे हुए थे... कहा भी है कि- लोभी मनुष्य निधान भूमि में छुपाने के लिये भूमी खोदता