________________ 46 1 - 2 -1 - 1 (63) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन तथा धन, पुत्र, पत्नी एवं मात-पितादि के प्रति रागादि के कारणों से मरण पर्यंत प्रमादवाला यह जीव ऐसा सोचता रहता है कि- यह मेरा है, मैं इसका स्वामी हु, पोषक हुं... इत्यादि प्रकार से मूढमनवाला यह जीव संसार में रहता है... कहा भी है कि- मेरे पुत्र, मेरे भाइ, मेरे स्वजन, मेरा घर, मेरी पत्नी इत्यादि पशु की तरह में में करते हुए मनुष्य को मृत्यु हरण कर ले जाता है... पुत्र, स्त्री और वस्त्र, धन, मकान इत्यादि परिग्रह के प्रति ममत्व के दोष से मनुष्य कोश बनानेवाले कृमिक (कोसेटा) कीडे की तरह विनाश को पाता है और परिग्रह के पाप से दुःख को पाता है... अब इस संसार के दुःखों के विच्छेद के लिये नियुक्तिकार स्वयं दो गाथा कहतें हैं... नि. 185 संसार के छेद की इच्छावाला मनुष्य मोक्ष प्राप्ति के लिये ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मों का विनाश करता है, और कर्मो के विनाश के लिये कषायों का त्याग करना चाहिये, और कषायों के त्याग के लिये स्वजन आदि के मोह का त्याग करना चाहिये... नि. 186 तथा मेरी मां, मेरे पिताजी, मेरी बहिन, मेरे भाई, मेरी पत्नी, मेरे पुत्र इत्यादि तथा धन में आसक्त मनुष्य जन्म-मरण को पाता है... .. नरक-तिर्यंच-मनुष्य-देवगति स्वरूप संसार अथवा मात-पिता-पत्नी आदि के स्नेहराग स्वरूप संसार के विनाश को चाहनेवाला मनुष्य आठ प्रकार के कर्मो का नाश करे... और कर्मो के विनाश के लिये कर्मो के कारण स्वरूप कषायों का नाश करे, तथा कषायों के विनाश के लिये मात-पितादि में रहे हुए स्नेह-गग को छोडे... क्योंकि- मात-पितादि के संयोग के अभिलाषी प्राणी = मनुष्य धन, रत्न, अलंकार, वस्त्र, बरतन आदि में आसक्त होकर जन्म, रोग, शोक, वृद्धावस्था एवं मरण के अनंत दु:खों को प्राप्त करता है... __ इस प्रकार कषाय एवं इंद्रिय के विषयों में प्रमादी, मात-पितादि के लिये धन प्राप्ति में और संरक्षण में तत्पर यह जीव मात्र दुःखों को हि प्राप्त करता है... वह इस प्रकार- दिन और रात तथा च शब्द से पक्ष, मास आदि काल पर्यंत यह जीव शुभ अध्यवसाय के अभाव में संताप-परिताप को प्राप्त करता हुआ संसार में रहता है... वह इस प्रकार- यह सार्थ कब जाएगा ? किराना (वस्तु) कितना है ? कहां कितनी भूमी है ? खरीद और बेचने का समय कौनसा है ? कौन किसके साथ कब कहां निकलता है ? इत्यादि प्रकार से परिताप-संताप प्राप्त करता हुआ, काल याने कार्य का समय, और अकाल याने कार्य न करने का समय... इत्यादि देखने में भ्रमित होता रहता है...