SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका #1-2-0-09 कषायवाला... 2. दानरत = अन्न, वस्त्र आदि का दान देने में लीन, तत्पर... 3. शीलसंयमहीन = शील एवं संयम से रहित... 4. मध्यमगुण = न्यायसंपन्नता आदि मार्गानुसारी के पैंतीस गुणवाला... 4. देव-आयुष्य कर्म के बंधकारण पांच हैं... अणुव्रत = श्रावकों के बारह व्रत धारण करना... 2. महाव्रत = साधु के पांच महाव्रत का पालन... 3. बालतप = अज्ञानता के साथ तामली तापस की तरह काया को कष्ट देना... 4. अकाम निर्जरा = परवश होकर दु:ख सहन करना... सम्यक्दृष्टि = अच्छी-सत्य दृष्टिवाला... 6. नामकर्म के दो भेद, अशुभनाम एवं शुभनाम... 1. अशुभनाम कर्म के बंधकारण पांच है... 1. मन से वक्र = उलटा सुलटा बिचारनेवाला... 2. वचन से वक्र = उलट-पुलट बोलनेवाला... 3. काया से वक्र = उलटा टेढा कार्य करना... 4. मायावी = माया कपट करनेवाला गारव-प्रतिबद्ध = रस गारव, ऋद्धि गारव एवं सातागारव इन तीन गारव में आसक्त... 2. शुभनाम कर्म के बंधकारण भी पांच है और वे अशुभनाम के बंधकारणों से विपरीत हैं... याने 1. मन की सरलता, 2. वचन की सरलता, 3. काया की सरलता, 4. कपट न करना, 5. तीन गारव न रखना... 7. उच्चगोत्र कर्म के बंधकारण चार हैं... 1. अरिहंत आदि का भक्त = अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, स्थविर, उपाध्याय, साधु आदि का सेवक... 2. सूत्ररुचि = आगम सूत्र के प्रति रुचि-इच्छा हो... * अल्पमान = नम्र-विनयी किंतु स्वाभिमानी... 4. गुणप्रेक्षी = गुणो को देखनेवाला... गुणानुरागी... इन चार कारणों से उच्च गोत्र का बंध होता है... और नीचगोत्र का बंध इन चार कारणों से विपरीत चार कारणों से होता है... 1. अरिहंत आदि की सेवा नहि करनेवाला, 2. सूत्र के प्रति रुचि नहि रखनेवाला, 3. अभिमानी, 4. दोषों को देखनेवाला...
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy