________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1- 2-0-0 31 6. दर्शनावरणीय कर्म के नव भेद है- उनमें पांच निद्रा- 1. निद्रा, 2. निद्रानिद्रा, 3. प्रचला, 4. प्रचलाप्रचला और 5. थीणद्धी... तथा चार दर्शनावरण - 1. चक्षुर्दर्शनावरण, 2. अचक्षुर्दर्शनावरण, 3. अवधिदर्शनावरण, 4. केवलदर्शनावरण... दर्शन लब्धि की प्राप्ति से चार दर्शन एवं प्राप्त दर्शन लब्धि के उपयोग का घात (विनाश) करनेवाली पांच निद्रा... इन नवमें केवलदर्शनावरण तथा पांच निद्रा सर्वघाति है शेष तीन दर्शनावरण, देशघाति कर्म है... वेदनीय कर्म के दो भेद है साता और असाता... मोहनीय कर्म के दो भेद है, दर्शनमोहनीय एवं चारित्र मोहनीयकर्म- अब दर्शन मोहनीय कर्म बंध की अपेक्षा से एक प्रकार मिथ्यात्व हि है, जब कि- उदय की अपेक्षा से तीन प्रकार. है... 1. मिथ्यात्वमोहनीय, 2. मिश्र मोहनीय, 3. सम्यक्त्व मोहनीय... अब चारित्र मोहनीय कर्म, सोलह कषाय एवं नव नोकषाय भेद से 25 पच्चीस प्रकार से है... इनमें भी मिथ्यात्व एवं (संज्वलन छोडकर) बारह कषाय = 13 कर्म सर्वघाति है, शेष पंद्रह (15) कर्म देशघाति है... आयुष्य कर्म के नारक आदि भेद से चार प्रकार है... नामकर्म के- गति आदि के भेद से 42 प्रकार और उत्तर प्रकृति के भेद से 93 प्रकार है... किंतु यहां प्रस्तुत व्याख्या में 42 प्रकार कहे गये हैं... 1. गति नरकगति आदि चार 2. जाति एकेंद्रिय बेइंद्रिय आदि पांच 3. शरीर औदरिक आदि पांच औदारिक वैक्रिय आहारक अंगोपांग-३ निर्माण शरीरके अवयवों की रचना-१ 6. बंधन औदारिक आदि शरीर में औदारिकादि कर्मवर्गणा का एकमेक जुडना... वह पांच एवं पंद्रह प्रकार से है 7. संघातन बंधन के योग्य औदारिक आदि कर्मवर्गणा की रचना विशेष स्थापना स्वरूप... संधातन पांच प्रकार से है... 8. संस्थान समचतुरस्र आदि 6 प्रकार... 9. संहनन वज्रऋषभनाराच आदि 6 संघयण 10. स्पर्श शीत उष्ण आदि आठ 11. रस मधुर अम्ल आदि पांच 12. गंध सुगंध एवं दुर्गंध = 2 भेद m >> उपांग