________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-2-0-0 // भव्यशरीर; 3. तद्व्यतिरिक्त... उनमें तद्व्यतिरिक्त के तीन भेद होते हैं... 1. औदयिकमूल, 2. उपदेशमूल, 3. आदिमूल. 1. वृक्ष आदि के मूल स्वरूप परिणाम पाये हुए द्रव्य को औदयिक द्रव्यमूल कहते हैं... 2. वैद्य रोग के विनाश के लिये रोगी को पिप्पलीमूल आदि का उपदेश-कथन करतें हैं... उसे उपदेशमूल कहतें हैं... वृक्ष आदि के मूल के उत्पत्ति के प्रथम कारण को आदि-मूल कहते हैं, वे इस प्रकारस्थावर नामगोत्र कर्म प्रकृति के कारण से और मूल के निर्वर्तन की हेतुभूत उत्तर प्रकृति के कारण से मूल उत्पन्न होता है... सारांश यह है कि- वृक्ष के औदयिक शरीर में मूल को बनानेवाले उदय में आये हुए कर्म पुद्गलों के आद्य कारण कार्मण शरीर क्षेत्रमूल- जिस क्षेत्र में मूल उत्पन्न हो, अथवा जहां मूल की व्याख्या की जाय वह क्षेत्रमूल... कालमूल- जितना समय मूल स्थिर रहे, अथवा जिस समय में मूल की व्याख्या की जाय... वह कालमूल... भावमूल- के तीन प्रकार है वे इस प्रकार... नि. 174 1. औदयिक भावमूल, 2. उपदेशक भावमूल और 3. आदि भावमूल... उनमें नामगोत्र कर्मो के उदय से वनस्पतिकाय का मूल बना हुआ जीव हि औदयिक भावमूल है... आचार्य, उपदेशक हि उपदेशक मूल है, जैसे कि- कर्मो के उदय से हि जीव वृक्ष के मूल . जड के स्वरूप उत्पन्न होते हैं, मोक्ष और संसार का जो आदि मूलभाव है, उनका तीर्थंकर उपदेशक है... वह इस प्रकार- जैसे की- मोक्ष का आदिमूल ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और औपचारिकविनय स्वरूप पांच प्रकार का विनय है... क्योंकि- मोक्ष की प्राप्ति का मूल विनय हि है... कहा भी है कि- विनय से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से चारित्र और चारित्र से हि मोक्ष होता है... तथा मोक्ष में हि अव्याबाध सुख है... अन्यत्र भी कहा है कि- विनय का फल गुरुसेवा, गुरुसेवा का फल श्रुतज्ञान, ज्ञानका फल विरति, विरति का फल आश्रव का निरोध याने संवर, संवर का फल तपश्चया, तप से कर्मो की निर्जरा, कर्मो की निर्जरा से क्रियाओं से निवृत्ति, क्रियाओं के अभाव में अयोगी-पना अर्थात् योग का अभाव, मन-वचनकाया के योग के अभाव में भव याने जन्मो की परंपरा का नाश और जन्म की परंपरा के विनाश से हि आत्मा का अक्षय-अविचल स्वरूप मोक्ष होता है इसीलिये कहा है कि- सभी कल्याण-सुख का कारण विनय हि है... तथा संसार का आदिमूल विषय-कषाय हि है... क्योंकि- विषय और कषाय से हि भव-वृक्ष फलता-फूलता है...