________________ 14 1-2-0-0 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 00 दर्शन सप्तक के क्षय से मिथ्यात्व का अभाव... 2. चारित्रमोह के क्षय से शेष घातिकर्मो का क्षय... 3. घातिकर्मो के क्षय से केवलज्ञान एवं केवलदर्शन का प्रगट होना... सभी कर्मो के क्षय से संसार में जन्म का अभाव और संपूर्ण तथा निश्चित निराबाध परमानंद स्वरूप मोक्षसुख की प्राप्ति... ___ क्षायोपशमिक- क्षायोपशमिक भाव स्वरूप ज्ञान-दर्शनादि गुणों की प्राप्ति.... पारिणामिक- भव्यत्व, जीवत्व आदि... 6. सान्निपातिक- मनुष्यगति में औदयिकादि पांच भावों का मिश्रण.. वह इस प्रकार- मनुष्यगतिकर्म के उदय से - औदयिक भावगुण .. पंचेंद्रियत्व से मतिज्ञानादि - क्षायोपशमिक भाव दर्शनसप्तक के क्षय से - क्षायिक भाव चारित्र मोहनीय के उपशम से - औपशमिक भाव भव्यत्व से पारिणामिक भाव इस प्रकार जीव के भावगुण कहे, अब अजीव के भावगुण-उनके दो प्रकार है, औदयिक और पारिणामिक- शेष अन्य भावगुण अजीव में नहि होते हैं... उदय में होनेवाला भावगुण = औदयिक भावगुण और वह अजीव में इस प्रकार से समझीयेगा - कितनीक कर्म प्रकृतियां पुद्गलविपाकी होती है, और वे इस प्रकार- औदारिक आदि पांच शरीर, छह (6) संस्थान, तीन अंगोपांग, 6 संहनन, पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस, आठ स्पर्श, अगुरुलघु, पराघात, उपघात, उद्योत, आतप, निर्माण, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यह सभी पुद्गलविपाकी कर्म है... यह सभी जीव के संबंधित होते हुए भी इनका पुद्गल विपाकी पना माना गया है... तथा पारिणामिक अजीवगण के दो भेद है... 1. अनादि पारिणामिक 2. सादि पारिणामिक... उनमें अनादि पारिणामिक भाव धर्मास्तिकाय में गति सहायकता स्वरूप, अधर्मास्तिकाय में स्थिति सहायकता स्वरूप, और आकाशास्तिकाय में अवगाहन दान स्वरूप है, जब कि- सादि पारिणामिक भाव- पुद्गल स्कंध स्वरूप बादल, इंद्रधनुष आदि में तथा पुद्गल परमाणु में वर्णादि के गुणांतर की प्राप्ति... गुण का स्वरूप पूर्ण हुआ अब “मूल" शब्दके निक्षेप कहतें हैं... नि. 173 मूल शब्द के 6 निक्षेप होते हैं, नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव... उनमें 1. नाम एवं 2. स्थापना सुगम है... 3. द्रव्यमूल के तीन प्रकार है... 1. ज्ञ शरीर, 2.