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________________ # 1-2-0-0 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन मनुष्य सदा अवस्थित (स्थिर) यौवनादि गुणवाले होते हैं.... (6) फलगुण : क्रिया का फल, इस जन्म एवं जन्मांतर के हित के लिये सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्र की क्रियाएं मोक्ष फल दायक होनी चाहिये... यदि ऐसा न हो तब फलगुण निष्फल हि है... जबकि- सम्यग्दर्शन- ज्ञान एवं चारित्र की क्रिया से संपूर्ण एवं निश्चित निराबाध सुख स्वरूप सिद्धि-मोक्ष फलगुण प्राप्त होता है... कहा भी है कि- सम्यग् दर्शनादि क्रियाएं सिद्धिफल से हि गुणवती है... शेष सभी क्रियाएं संसार में साता एवं असाता दायक सुख दुःख स्वरूप फल के आभास वाली हि है... संसार में सुख का मात्र आरोप = आभास हि है, वास्तविक सुख संसार में नहि है... शेष सभी क्रियाएं निष्फल याने संसार में परिभ्रमण स्वरूप फल दायक हि मानी गइ है... पर्यायगुण : द्रव्य की अवस्था विशेष स्वरूप हि पर्याय है... पर्याय स्वरूप जो गुण वह पर्यायगुण... गुण और पर्याय में नयवाद विशेष से अभेद हि माना गया है... और वह निर्भजना याने निश्चित भाग-द्रव्य के अंश स्वरूप हि है... वह इस प्रकारपुद्गल स्कंध-द्रव्य देश, प्रदेश के भाग से विभक्त होता हुआ परमाणु पर्यंत भेद प्राप्त करता है... और परमाणु के भी एकगुण काला, द्विगुणकाला इत्यादि अनंत भेद प्राप्त होतें हैं... (8) गणना-गुण : दो तीन चार आदि... इससे बड़े से बड़ी संख्या संख्यात-असंख्यात एवं अनंत संख्या की गणना-मर्यादा जान शकतें हैं... . करण-गुण : कला में कुशलता... वह इस प्रकार- जल आदि में तैरने की कला की चतुराइ प्राप्त करने के लिये अंगोपांग- हाथ-पाउं का उत्क्षेपण क्रिया होती है... (10) अभ्यास-गुण : भोजन आदि संबंधित अभ्यास... वह इस प्रकार- आज का जन्म पाया हुआ जीव-मनुष्य भवांतर के भोजन के अभ्यास से हि मुख से स्तनपान करतें हैं, रोना बंध करतें हैं, अथवा तो गाढ अंधकार में भी कवल मुख में हि लेते हैं और व्याकुल चित्त होने पर भी जहां खाज आवे, वहीं मनुष्य खजवालता है, अन्यत्र नहिं... (11) गुण-गुण : नम्रता-सरलता आदि... किंतु- गुण भी किसी को अगुण बन जाता है, जैसे कि- सरल मनुष्य.की सरलता मायावी मनुष्य में अगुण याने कष्टदायक हो शकती है... कहा भी है किदुर्जन लोग लज्जालु में रही हुइ सरलता को कपट मानते हैं... और व्रत की रुचि में सरलता को दंभ, पवित्रता में सरलता को कपट, शूरवीर में निर्दयता और ऋजु
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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