________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 485 * 226 (अध्ययन-५) हिंसगविसयारंभग एगचरुत्ति न मुणी पढमगंमि / विरओ मुनित्ति बिइए अविरयवाई परिग्गहिओ॥ 227 तइए एसो अपरिग्गहो य निव्विन्नकामभोगो य। अव्वत्तस्सेगचरस्स पच्चवाया चउत्थंमि / / 228 हरओवमो य तवसंयमगुत्ती निस्संगया य पंचमए। उम्मग्गवजणां छट्ठगंमि तह रागदोसे य॥ 229 आयाणपएणावंति गोण्णनामेण लोगसारुत्ति। . लोगस्स य सारस्स य चउक्कओ होइ निक्खेवो / 230 सव्वस्स थूल गुरुए मज्झे देसप्पहाण सरीराई। धण एरंडे वइरे खइरंब जिनाइ उरालाई / 231 भावे फलसाहणया फलओ सिद्धी सुहुत्तमवरिट्ठा। साहणय नाणदसणसंजमतवसा तहिं पगयं // 232 लोगंमि कुसमएसु य कामपरिग्गहकुमग्गलग्गेसुं। सारो हु नाणदंसणतवचरणगुणा हियट्ठाए / 233 चइऊणं संकपयं सारपयमिणं दढेण धित्तव्वं। . अत्थि जिओ परमपयं जयणा जा रागदोसेहिं / 234 लोगस्स उ को सारो ? तस्स य सारस्स को हवइ सारो ? | तस्स य सारो सारं जइ जाणसि पुच्छिओ साह /