________________ 486 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 235 लोगस्स सार धम्मो धम्मपि य नाणसारियं बिंति। नाणं संजमसारं संजमसारं च निव्वाणं / / 238 चारो चरिया भरणं एगटुं वंजणं तहिं छक्कं / दव्वं तु दारुसंकम जलथलचाराइयं बहुहा // 237 खित्तं तु जंमि खित्ते कालो काले जहिं भवे चारो। भावमंमि नाणदंसणचरणं तु पसत्थमपसत्थं / / / 238 लोगे चउव्विहंमि समणस्स चउव्विहो कहं चारो ? | होई धिई अहिगारो विसेसओ खित्तकालेसुं॥ 239 पावोवरए अपरिग्गहे अ गुरुकुलनिसेवए जुत्ते। उम्मग्गवज्जए रागदोसविरए य से विहरे॥ // इति आचाराने प्रथमश्रुतस्कन्धे अध्ययन 2-3-4-5 निर्युक्तयः // MMAAAR AAAAA AMA LUI ALLlear . CN NAER MIRE CH - In卐I IRom