________________ 484 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 217 छप्पिय जीवनिकाए नोवि हणे नोऽवि अ हणाविज्जा / नोऽवि अ अणुमन्निज्जा सम्मत्तस्सेस निजुत्ती / / 218 खुड्ग पायसमासं धम्मकहंपि य अजंपमाणेणं। छन्नेण अन्नलिंगी परिच्छिया रोहगुत्तेणं / / 219 भिक्खं पविटेण मएऽज दिटुं, पमयामुहं कमलविसालनेतं। वक्खित्तचित्तेण न सुट्ठ नायं, सकुंडलं वा वयणं न वत्ति / / 220 फलोदएणं मि गिहं पविट्ठो, तत्थासणत्था पमया मि दिट्ठा / वक्खित्तचित्तेण न सुटु नायं, सकुंडलं वा वयणं न वत्ति / / 221 मालाविहारंमि मएऽज दिट्ठा, उवासिया कंचणभूसियंगी। वक्खित्तचित्तेण न सुटू नायं, संकुडलं वा वयणं न वत्ति / 222 खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स, अज्झप्पजोगे गयमाणसस्स। किं मज्झ एएण विचिंतएणं ? सकुंडलं वा वयणं न वत्ति // 223 उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया। दोवि आवडिया कुडे, जो उल्लो तत्थ लग्गइ // 224 एवं लग्गंति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा / विरत्ता उ न लग्गति, जहा से सुक्कगोलए / 225 जह खलु झुसिरं कर्ट सुचिरं सुकं लहुं डहइ अग्गी। तह खलु खवंति कम्मं सम्मच्चरणे ठिया साहू //