________________ 8 1 -2-0-09 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन तथा भावविजय का यहां उपयोग है... अर्थात् जिस प्रकार आठों कर्मो में प्राणीगण संसार के बंधन में आते हैं और जिस प्रकार संवर-निर्जरा से प्राणी संसार से मुक्त होते हैं यह बात इस दूसरे अध्ययन में कही जाएगी... भावलोक के विजय से क्या फल होता है ? यह बात अब कहतें हैं... नि. 168 औदयिक भाव स्वरूप कषाय लोक के उपर विजय पाने से आत्मा संसार से मुक्त होता है, इसीलिये कषाय से निवृत्ति हि कल्याणकारक है... इच्छा एवं कामवासना से निवृत्त मतिवाला हि तत्काल संसार से मुक्त होता है... नामनिष्पन्न निक्षेप पूर्ण हुआ, अब सूत्रालापक-निष्पन्न निक्षेप का अवसर है, और वह तो सूत्र के होने में हि होता है अतः सूत्रानुगम में अस्खलितादि गुण युक्त सूत्र पढना चाहिये... और वह सूत्र- जे गुणे से मूलट्ठाणे... इत्यादि आगे कहा जाएगा... निक्षेप नियुक्ति अनुगम के द्वारा प्रत्येक पद का निक्षेप कीये जाते हैं, उनमें “गुण" पद के पंद्रह (15) निक्षेप कहते हैं... . नि. 169 नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, फल, पर्यव, गणन, करण, अभ्यास, गुणगुण, अगुणगुण, भव, शीलगुण, भावगुण = 15... यह पंद्रह (15) गुण पद के निक्षेप हैं... इस प्रकार सूत्रानुगम से सूत्र का पाठ करने से एवं निक्षेपनियुक्ति-अनुगम से सूत्र के अवयवों के निक्षेप करने पर अब उपोद्घात-निर्युक्ति का अवसर है... और वह उद्देसे इत्यादि द्वार गाथा दो (2) से समझीयेगा... अब सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति का अवसर है... गुण-पद के पंद्रह निक्षेप में से (1) नाम एवं (2) स्थापना निक्षेप सुगम है, अब द्रव्य निक्षेप कहतें हैं... नि. 170 (3) द्रव्यगुण = गुणों का जहां संभव हो ऐसा द्रव्य... और वह सचित्त अचित्त एवं मिश्र भेद से तीन प्रकार का द्रव्यगुण है... प्रश्न- गुण गुणी में तादात्म्य (तदाकार) भाव से रहता है इसलिये द्रव्यगुण द्रव्य हि है... उत्तर- द्रव्य और गुण के लक्षण में भेद हैं अतः दोनो भिन्न हि तो हैं... वह इस प्रकार द्रव्य का लक्षण = गुण एवं पर्यायवाला द्रव्य है... विधान = प्रकार, और वे धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय एवं पुद्गलास्तिकाय आदि हैं... तथा गुण का लक्षण = द्रव्य में रहे हुए, द्रव्य के साथ सदा रहनेवाले,