________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-5-5 - 1 (173) 437 -इस प्रकार आचार्य अक्षोभ्य ह्रद के समान हैं तथा सर्व प्रकार से इंद्रिय एवं नोइंद्रिय . (मन) स्वरूप गुप्ति से गुप्त ऐसे इन आचार्यजी को हे शिष्य ! आप देखीयेगा... इस मनुष्य लोक में इन आचार्यों के सिवा अन्य मुनिजन साधु महर्षि भी प्रथम भंग के दिखाये गये गुणवाले ह्रद के समान होते हैं... अतः उन्हें भी देखीयेगा... वे साधुलोग स्व-परके स्वरूप को प्रगट करनेवाले आगम-शास्त्र को जानने स्वरूप प्रज्ञानवाले हैं... तथा वे प्रबुद्ध भी हैं... क्योंकि- आगम शास्त्र को जाननेवालों को भी कभी कभी मोहनीयकर्म के उदय से वस्तु-पदार्थ के गुण एवं पर्यायों को समझने में हेतु एवं उदाहरण न मीलने पर तथा ज्ञेय पदार्थों के स्वरूप की गहनता के कारण से संशय होना संभवित है और संशय का निराकरण न हो; तब अश्रद्धा भी हो शकती है... इसलिये कहते हैं कि- वे साधुलोग, तीर्थंकर परमात्मा ने वस्तु पदार्थ का स्वरूप जिस प्रकार कहा है, वैसा हि जाननेवाले होतें हैं अतः प्रबुद्ध है... ___तथा प्रबुद्ध होने पर भी कर्मो की गुरुता के कारण से सावध कार्य = अनुष्ठानों का त्याग न भी हो; अतः कहते हैं कि- वे साधुलोग सावध (पापाचार) कार्यों से विरत हैं... यहां यह जो कुछ कहा वह मेरे कहने मात्र से हि आप स्वीकार न करें; किंतु आप स्वयं हि कुशाग्र बुद्धी से मेरी कही गइ बातों का मध्यस्थ दृष्टि से विचार (चिंतन) करके देखो और बाद में मानो-स्वीकारो ! तथा यह भी देखो कि- समाधि मरण के काल (समय) की अभिकांक्षा के साथ मोक्षमार्ग स्वरूप संयमानुष्ठान में साधुलोग चारों और से उद्यम करतें हैं... "इति" पद अधिकार की समाप्ति का सूचक है... तथा “ब्रवीमि" पद का अर्थ पूर्ववत् जानीयेगा... अब आचार्य की वक्तव्यता को पूर्णकर के विनेय याने शिष्यगण की वक्तव्यता को सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे के सूत्र से कहेंगे। v सूत्रसार : चतुर्थ उद्देशक में अव्यक्त-अगीतार्थं मुनि के एकाकी विचरने का निषेध किया गया है। अब प्रस्तुत उद्देशक में आचार्य की सेवा में रहकर रत्नत्रय की आराधना-साधना करने वाले मुनि के विषय में विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि- संघ की व्यवस्था के लिए, साधु-साध्वीयों में अनुशासन बनाए रखने के लिए शास्ता का होना जरुरी है। आगम की परिभाषा में शास्ता को आचार्य कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में गुणों एवं उनकी श्रुत संपदा को जलाशय की उपमा देकर वर्णन किया गया है। जलाशय की विशेषता का उल्लेख करते हुए चार बातें बताई गई हैं-१-जलाशय समभूमि पर होता है, २-जल से परिपूर्ण होता है, ३-उपशान्त रज वाला होता है, और ४जलचर जीवों का संरक्षक या आश्रयभूत होता है। सरोवर का महत्त्व इन्हीं चार विशेषताओं