________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१-५-४-४ (172) 427 याने दशविध प्रायश्चित के कोइ एक भेद के सम्यग् अनुष्ठान के द्वारा विवेक (सांपरायिक कर्मो .का विनाश) होता है... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में प्रमाद और अप्रमाद का सुन्दर शब्दों में विश्लेषण किया गया है। प्रमाद हि आरम्भ-समारम्भ एवं सभी पापों का मूल है। प्रमाद पूर्वक कार्य करने से अनेक जीवों की हिंसा होती है, पाप कर्म का बन्ध होता है। इसलिए साधु के लिए आगम में प्रमत्त भाव का त्याग करने का आदेश दिया गया है। दशवैकालिक सूत्र में बताया गया है कि- अविवेक पूर्वक चलने वाला, खड़े रहने वाला, बैठनेवाला, शयन करने वाला, भोजन करने वाला, एवं बोलने वाला पापकर्म का बन्ध करता है। अविवेक पूर्वक की जाने वाली प्रत्येक क्रिया पाप बन्ध का कारण है और विवेक पूर्वक की जाने वाली उपरोक्त सभी क्रियाओं में पाप कर्म का बन्ध नहीं होता। इससे स्पष्ट होता है कि- अविवेक एवं प्रमाद से पाप कर्म का बन्ध होता है, अतः साधु को अप्रमत्त भाव से विवेक पूर्वक कार्य करना चाहिए। विवेक पूर्वक क्रिया करते हुए भी कभी भूल से किसी प्राणी की हिंसा हो जाए तो ईर्यापथिक (ईरियावही०) क्रिया के द्वारा उक्त पाप का क्षय कर दे और यदि परिस्थिति वश या विशेष कारण से पृथ्वीकायादि की हिंसा हुइ हो तब उस पाप से निवृत्त होने के लिए संभवित तप अनुष्ठान या प्रायश्चित स्वीकार करे इस तरह भूल से या हिंसा आदि दोषों का क्षय करने के लिए प्रायश्चितादि क्रियाओं का विधान किया गया है। अतः इस तरह प्रायश्चित एवं तप के द्वारा मुनि पाप कर्म का क्षय कर देता है। इसलिए साधु को अविवेक एवं प्रमाद का त्याग करके सावधानी के साथ संयम - ' में संलग्न रहना चाहिए। ____अप्रमत्त व्यक्ति का जीवन कैसा होता है, इसको बताते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहते हैं... . I सूत्र // 4 // // 172 // 1-5-4-4 से पभूयदंसी पभूयपरिण्णाणे उवसंते समिए सहिए सया जए, दटुं विप्पडिवेएइ अप्पाणं किमेस जणो करिस्सइ ? एस से परमारामो जाओ लोगंमि इत्थीओ, मुणिणा हु एवं पवेइयं, उब्बाहिज्जमाणे गामधम्मेहिं अवि निब्बलासए अवि ओमोयरियं कुज्जा अवि उड्ढं ठाणं ठाइज्जा अवि गामाणुगामं दुइज्जिज्जा अवि आहारं वुच्छिज्जा अवि .चए इत्थीसु मणं, पुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेए कलहासंगकरा भवंति, पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणाए त्तिबेमि। से नो काहिए नो