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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 4 - 0 - 0 // 297 अब नामनिष्पन्न निक्षेपके क्रमसे आये हुए सम्यक्त्व पद का निक्षेप कहतें हैं... नि. 217 नाम सम्यक्त्व, स्थापना सम्यक्त्व, द्रव्य सम्यक्त्व एवं भाव सम्यक्त्व... इस प्रकार सम्यक्त्व के संक्षेप से चार निक्षेप होते हैं... अब नाम एवं स्थापना सुगम होने से उनको न कहते हुए, द्रव्य एवं भाव सम्यक्त्व को कहते हैं... नि. 218 ज्ञशरीर एवं भव्यशरीर से भिन्न तद्व्यतिरिक्त द्रव्य सम्यक्त्व... ऐच्छानुलोमिक यानेइच्छा = चित्त की प्रवृत्ति अर्थात् अभिप्राय और उस को अनुकूल वह ऐच्छानुलोमिक... इच्छाभाव के अनुकूलवाले जो कोइ द्रव्य है, उन में कृत आदि उपाधि के भेद से सात प्रकार होते हैं... वे इस प्रकार- कृत, संस्कृत, संयुक्त, प्रयुक्त (उपयुक्त) त्यक्त, भिन्न, छिन्न... कृत याने अपूर्व = नया बनाये हुए रथ आदि... उस के अवयवो का निर्माण करना, वस्तु को अच्छी तरह से करनेवाला और उस के लिये चित्त की स्वस्थता का निर्माण... अथवा तो जिस के लिये कीया हो, उस को अच्छे और शीघ्रता से करने के द्वारा अथवा समाधान के हेतु... वह कृतद्रव्यसम्यक... // 1 // इसी प्रकार “संस्कृत” में भी जानीयेगा... उसी रथ आदि के भग्न या जीर्ण अवयवों का संस्कार करना वह संस्कृत द्रव्यसम्यक // 2 // जिस दो द्रव्यों का संयोग अन्य गुण के आधान के लिये किया जाय, उपमर्दन के लिये नहिं... अथवा उपभोक्ता के मन की प्रीति के लिये, दुध और सक्कर की तरह... वह. संयुक्त द्रव्य सम्यग् // 3 // जो प्रयुक्त कीया हुआ द्रव्य लाभ का हेतु होने से आत्मा के समाधान के लिये समर्थ होता है वह प्रयुक्तद्रव्यसम्यक् अथवा उवउत्त याने जो अभ्यवहृत याने भोजन कीया हुआ द्रव्य मन के समाधान के लिये समर्थ होता है वह उपयुक्त द्रव्य सम्यक् // 4 // तथा त्याग कीये हुए भार आदि द्रव्य वह त्यक्तद्रव्यसम्यक् // 5 // तथा दधि याने दहि के पात्र आदि भिन्न याने तुटने पर कौवे आदि को समाधान जिस से हो, वह भिन्नद्रव्यसम्यक् // 6 // 7. तथा अधिक मांस आदि के छेदन से जहां समाधि होवे वह छिन्नद्रव्यसम्यक् // 7 // यह सातों प्रकार द्रव्य समाधान के कारण होते हैं, अतः वे द्रव्यसम्यक् है... और इस से जो विपरीत है, वह असम्यक् है... अब भाव-सम्यक् कहते हैं... : 3
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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