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________________ 298 1 - 4 - 0 - 0 म श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन नि. 219 भाव सम्यक् के तीन प्रकार है... 1. दर्शन, 2. ज्ञान, 3. चारित्र... उनमें भी दर्शन एवं चारित्र के तीन प्रकार हैं और ज्ञान के दो प्रकार हैं... औपशमिक सम्यग्दर्शन... जिस जीवात्मा ने तीन पुंज नहि कीये है ऐसे अनादि मिथ्यादृष्टि को यथाप्रवृत्तिकरण के द्वारा देशोन एक कोडाकोडी सागरोपम से अतिरिक्त सभी कर्मो का क्षय करने के बाद अपूर्वकरण के द्वारा मिथ्यात्व की ग्रंथि का भेदन करके, जहां मिथ्यात्व मोहनीय का उदय न हो ऐसे स्वरूपवाला अंतरकरण करके अनिवृत्तिकरण के द्वारा जीव सर्व प्रथम सम्यक्त्व प्राप्त करता है वह है औपशमिक सम्यग्दर्शन... कहा भी है कि- जिस प्रकार वन का दावानल (अग्नि) उखर (रण) भूमी को प्राप्त करके बुझ जाता है, इसी प्रकार मिथ्यात्व के उदय के अभाव में जीव उपशम सम्यक्त्व प्राप्त करता है... // 1 // तथा सम्यक्त्व मोहनीय के पुद्गलों के उपष्टंभ याने सहयोग से होनेवाला आत्मा का सम्यग् अध्यवसाय वह क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन है... // 2 // 3. तथा दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक सम्यग्दर्शन होता है... // 3 // चारित्र भी उपशमश्रेणी में औपशमिक चारित्र... 1. तथा कषायों के क्षयोपशम से. क्षायोपशमिक चारित्र... 2. तथा चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक चारित्र... // 3 // तथा ज्ञान में भाव सम्यग् दो प्रकार से है... 1. क्षायोपशमिक ज्ञान... 2. क्षायिक ज्ञान... उनमें चार प्रकार के ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान एवं मनःपर्यव ज्ञान आदि चार क्षायोपशमिक ज्ञान है... तथा संपूर्ण ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से प्रगट होनेवाला केवलज्ञान क्षायिक ज्ञान है... .. इस प्रकार त्रिविध भाव सम्यक्त्व कहने पर वादी प्रश्न करता है कि- जो दर्शन ज्ञान एवं चारित्र तीनों के साथ सम्यग् का कथन संभवित है तो फिर एक दर्शन के साथ हि सम्यग् का कथन क्यों रूढ हुआ है ? कि- जो आप इस अध्ययन में कह रहे हो... उत्तर- दर्शन के होने पर हि अन्य दो ज्ञान एवं चारित्रका होना होता है... क्यों कि- मिथ्यादृष्टि को ज्ञान एवं चारित्र नहि होतें... आबालवृद्ध सभी के बोध के लिये एवं यहां प्रस्तुत अध्ययन में सम्यक्त्व की प्रधानता कहने के लिये अंध एवं चक्षुवाले दो राजकुमार का दृष्टांत कहते हैं... उदयसेन राजा के वीरसेन एवं सुरसेन नाम के दो राजकुमार थे, उनमें वीरसेन आंखों से अंध है अत: उस को राजा ने गांधर्व आदि कलाओं का अभ्यास करवाया... और दुसरे सुरसेन राजकुमार को धनुर्विद्या आदि सभी कलाओं का अभ्यास करवाया अतः वह अधिक
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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