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________________ 274 1 - 3 - 3 - 7 (131) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन तथा हे पुरुष ! सत्य याने सज्जनों को हितकारक संयम... इसी संयम को हि अन्य सभी सावध क्रियाओं का त्याग करके आसेवन-परिज्ञा से पालो... आचरो... अथवा देवगुरु की साक्षी से ग्रहण कीये हुए व्रतों की प्रतिज्ञा का सत्य हि निर्वाह करो... अथवा सत्य याने आगम और आगम का ज्ञान, अर्थात् मुमुक्षु साधु आगम में कहे हुए आचार-पंचाचार का पालन करें... क्योंकि- सत्य याने आगमसूत्र की आज्ञा में रहा हुआ मेधावी साधु हि मार. याने संसार को तैरता है... तथा ज्ञानादि से सहित अथवा हित से सहित ऐसा साधु हि धर्म याने श्रुतधर्म और चारित्रधर्म को ग्रहण करके श्रेयः याने पुन्य अथवा आत्महित को अच्छी तरह से देखता है... यहां अप्रमत्तता तथा अप्रमत्तता के गुणों को कहा... अब इससे विपर्यय याने प्रमत्तता का स्वरूप सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... v सूत्रसार : यह हम देख चुके हैं कि- साधक धर्मध्यान के द्वारा योगों को एकाग्र करता है। मन, वचन एवं काया की बाह्य प्रवृत्ति को रोककर अपने अंदर की ओर मोडता है, आत्म चिन्तन में लगाता है। इस से संयम साधना में तेजस्विता आती है और, वह इस साधना के द्वारा नए कर्मों के आगमन को रोकता है और पुरातन कर्मों का क्षय करता है। इस प्रकार वह एक दिन समस्त कर्मों का सर्वथा क्षय करके मोक्ष को, निर्वाण को पा लेता है। क्योंकि- कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है अथवा संपूर्ण कर्म क्षय का ही दूसरा नाम मुक्ति है। इसलिए प्रस्तुत सूत्र में यह कहा गया है कि- जो कर्म क्षय करना जानता है, वह मुक्ति को जानता है और जो मोक्ष को जानता है वह कर्म क्षय करने की प्रक्रिया को जानता है। साधक अन्तर्मुखी संयम-साधना से ही कर्म क्षय करता है। इसलिए उसे आदेश देते हुए कहा गया है-तू अपनी आत्मा को बहिर्वृत्तियों से हटाकर धर्मघ्यान या आत्मचिन्तन की ओर मोड। दूसरे शब्दों में यों कहते हैं कि- तू बाहिर से सिमट कर अपने आपकी अन्दर स्थित हो जा। इस संवरभाव से हि विषय-वासना की आसक्ति से आने वाले कर्म रुक जायेंगे और परिणाम स्वरूप तू दुःखों से अर्थात् संसार से मुक्त हो जाएगा। .. इसके लिए सत्य-संयम का आचरण आवश्यक है। सत्य पथ पर गतिशील एवं सत्यआगम की आज्ञा के अनुसार प्रवृत्ति करने वाला व्यक्ति संसार सागर से पार हो जाता है। क्योंकि- विषयों में आसक्त रहने का नाम संसार है और जब वह विषयों से अपने सर्वथा हटा लेता है, तो उसके लिए संसार दूर होता जाता है और मोक्ष निकट होता है, इसलिए साधक को सत्य-संयम के परिपालन करने एवं आगम के अनुसार पंचाचार की प्रवृत्ति करने का आदेश दिया गया है। यहां प्रस्तुत प्रकरण में सत्य शब्द सत्य, संयम एवं आगम तीनों
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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