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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 3 - 3 - 8 (132) 275 अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। - ‘मार' शब्द का अर्थ संसार किया है, यह भी उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त 'मार' शब्द कामदेव के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है और वह अर्थ भी यहां अनुपयुक्त नहीं है। क्योंकिश्रुत और चारित्र धर्म का आराधक काम-वासना पर भी विजय पा लेता है और विषय-भोग का विजेता साधु हि कर्म का क्षय करके जन्म-मरण रूप संसार सागर से पार हो जाता है। ___ “पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ एवं दुक्खा पमुच्चसि' इस पाठ से अयोगी गुणस्थान की ओर संकेत किया गया है। इसमें कहा गया है कि- हे पुरुष ! तू योगों का निरोध कर, जिससे तू सारे दुःखों से छूट जाएगा। योगों का पूर्ण निरोध चौदहवें अयोगी गुणस्थान में ही होता है और इस गुणस्थान को प्राप्त करने के बाद जीव निर्वाणपद को पा लेता है, समस्त कर्म बन्धन एवं कर्म जन्य उपाधि से सर्वथा मुक्त-उन्मुक्त हो जाता है। इतना स्पष्ट होने पर भी कुछ लोग प्रमाद का सेवन करते हैं, विषय कषाय में आसक्त होते हैं। अतः उनका वर्णन करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 8 // // 132 // 1-3-3-8 दुहओ जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जंसि एके पमायंति // 132 // II संस्कृत-छाया : द्विधा जीवितस्य परिवन्दनमाननपूजनार्थं यस्मिन् एके प्रमाद्यन्ति // 132 // .III सूत्रार्थ : राग एवं द्वेष से नष्ट-विनष्ट सन्मतिवाले कितनेक प्राणी वर्तमान जीवित के वंदन मानन एवं पूजन के लिये प्रमाद करतें हैं // 132 // IV टीका-अनुवाद : राग एवं द्वेष दो प्रकार से तथा अपने लिये तथा अन्य के लिये अथवा इस जन्म के लिये और जन्मातर के लिये... अथवा तो राग एवं द्वेष से हत याने विनष्ट सन्मतिवाला यह प्राणी केलं वृक्ष के गर्भ के समान नि:सार तथा बिजली के चमकते चमकारे जैसे चंचल इस वर्तमान जीवित के परिवंदन, मानन एवं पूजन के लिये हिंसा आदि में प्रवृत्त होते हैं... ... परिवंदन याने स्तुति-स्तवन-प्रशंसा की प्राप्ति के लिये चेष्टा करतें हैं... वह इस प्रकार... लावक आदि के मांस के उपभोग से हृष्टपुष्ट सर्व अंग-उपांग से सुंदर मुझे देखकर के लोक-जनता सहज स्वेच्छा से हि मुझे वंदन करेंगे... अर्थात् वे लोग ऐसा कहेंगे कि
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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