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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 3 - 3 - 7 (131) // 273 ध्यान एवं आत्म चिन्तन का अधिकारी पुरुष याने आत्मा ही है। . आत्म चिन्तन की पूर्व भूमिका का वर्णन करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 7 // // 131 // 1-3-3-7 जं जाणिज्जा उच्चालइयं तं जाणिज्जा दूरालइयं, जं जाणिज्जा दूरालइयं तं जाणिज्जा उच्चालइयं / पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमुच्चसि, पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स आणाए से उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ, सहिओ धम्ममायाय सेयं समणुपस्सइ // 131 // II संस्कृत-छाया : यं जानीयात् उच्चालयितारं तं जानीयात् दूरालयिकम्, यं जानीयात् दूरालयिकं तं जानीयात् उच्चालयितारम् / हे पुरुष ! आत्मानमेव अभिनिगृहाण, एवं दुःखात् प्रमोक्ष्यसि। हे पुरुष ! सत्यमेव समभिजानीहि, सत्यस्य आज्ञया सः उपस्थित: मेधावी मारं तरति, सहित: धर्म आदाय श्रेयः समनुपश्यति // 131 // III सूत्रार्थ : . जो पुरुष कर्मो का छेद करता है वह मोक्षपद पाता है, और जो पुरुष मोक्षपद पाता है वह कर्मों का विच्छेद करता है... इसलिये हे पुरुष ! तुं अपने आत्मा का हि निग्रह कर... इस प्रकार दुःखों से मुक्त हो जाओगे... हे पुरुष ! सत्य को हि जानो... सत्य की आज्ञा से उपस्थित वह मेधावी मुनी संसार को तैरता है और हितवाला ऐसा वह मुनी धर्म को ग्रहण करके श्रेय कल्याण को देखता है // 131 // IV टीका-अनुवाद : उच्चालयिता याने कर्म और विषयों के संग को जो पुरुष दूर करता है वह हि पुरुष दूरालयिक याने सभी हेय धर्मवाले पदार्थों से दूर ऐसा मोक्ष पद या मोक्षमार्ग... अर्थात् मोक्षमार्ग में चलनेवाला है... हेतु और हेतुमत् भाव की दृष्टि से एवं गत-प्रत्यागत रीति से कहते हैं कि- जो पुरुष मोक्षमार्ग में चलता है वह कर्मो को और आश्रव के द्वारों को दूर करनेवाला है... अथवा तो जो मुनी सन्मार्ग के अनुष्ठानों को करता है वह कर्मो को दूर करता है... और वह हि अपने आत्मा का मित्र है... इसीलिये तो कहते हैं कि- हे पुरुष ! हे जीव ! भोगोपभोग विषयों के अनुराग का त्याग करके अपने आत्मा का धर्मध्यान के द्वारा निग्रह करो ! इस प्रकार से हि आप अपने आत्मा को दुःखों से मुक्त करोगे... इस प्रकार आत्मप्रदेशों में से कर्मो को दूर करनेवाला आत्मा हि आत्मा का मित्र है...
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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