________________ 2561 - 3 - 2 - 9/10 (123-124) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन समस्त कर्मों का क्षय करके निर्वाण पद को प्राप्त कर लेता है। इसलिए हे आर्य ! द्रव्य एवं भाव ग्रंथि-गांठ को जानकर और शोक एवं दुःख के कारण का भी परिज्ञान करके संयम मार्ग में प्रवृत्त होना चाहिए, परिग्रह एवं वासना में गम्यमान इन्द्रियों एवं मन का दमन करना चाहिए; उसे उस मार्ग से हटाकर संयम-साधना में संलग्न करना चाहिए। इस प्रकार संसार के स्वरूप का भली-भांति अवलोकन कर के उससे पार होने का प्रयत्न करना चाहिए। संसार से पार होने का साधन-संयम मनुष्य जन्म में ही मिल सकता है। इस मानव शरीर के द्वारा ही आत्मा सर्व बन्धनों से मुक्त हो सकता है। अतः ऐसे श्रेष्ठ साधन कोमानव जीवन को प्राप्त करके साधक को फिर से संसार बढ़ाने के साधन-हिंसा आदि पापाचरण में प्रवृत्त नहि होना चाहिए... आरम्भ-समारम्भ की प्रवृत्ति का त्याग करके संयम साधना में प्रवृत्त होना चाहिए। 'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्वोक्त समझें। // इति तृतीयाध्ययने द्वितीय: उद्देशकः समाप्तः // 卐卐.. : प्रशस्ति : मालव (मध्य प्रदेश) प्रांतके सिद्धाचल तीर्थ तुल्य शत्रुजयावतार श्री मोहनखेडा तीर्थमंडन श्री ऋषभदेव जिनेश्वर के सांनिध्यमें एवं श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिजी, श्रीमद् यतीन्द्रसूरिजी, एवं श्री विद्याचंद्रसूरिजी के समाधि मंदिर की शीतल छत्र छायामें शासननायक चौबीसवे तीर्थंकर परमात्मा श्री वर्धमान स्वामीजी की पाट-परंपरामें सौधर्म बृहत् तपागच्छ संस्थापक अभिधान राजेन्द्र कोष निर्माता भट्टारकाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. के शिष्यरत्न विद्वद्वरेण्य व्याख्यान वाचस्पति अभिधान राजेन्द्रकोषके संपादक श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. के शिष्यरत्न, दिव्यकृपादृष्टिपात्र, मालवरत्न, आगम मर्मज्ञ, श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम प्रकाशन के लिये राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिंदी टीका के लेखक मुनिप्रवर ज्योतिषाचार्य श्री जयप्रभविजयजी म. "श्रमण' के द्वारा लिखित एवं पंडितवर्य लीलाधरात्मज रमेशचंद्र हरिया के द्वारा संपादित सटीक आचारांग सूत्र के भावानुवाद स्वरूप श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिंदी टीका-ग्रंथ के अध्ययनसे विश्वके सभी जीव पंचाचारकी दिव्य सुवासको प्राप्त करके परमपदकी पात्रता को प्राप्त करें... यही मंगल भावना के साथ... "शिवमस्तु सर्वजगतः" वीर निर्वाण सं. 2528. राजेन्द्र सं. 96. ध विक्रम सं. 2058.