________________ 228 1 -3-1-5(113) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन कर्मो का चौथा सत्तास्थान... तथा मिथ्यात्व मोहनीय का क्षय होने से तेइस (23) कर्मो का पांचवा सत्तास्थान... और मिश्र मोहनीय का क्षय होने पर बाइस (22) कर्मो का छट्ठा सत्तास्थान होता है... तथा क्षायिक सम्यग्दृष्टि को दर्शन सप्तक का क्षय होने से इक्कीस (21) कर्मो का सातवां सत्तास्थान... और अप्रत्याख्यानावरण एवं प्रत्याख्यानावरण 4+4=8 कषायों का सत्ता में से क्षय होनेसे तेरह (13) कर्मो का आठवां सत्तास्थान होता है... तथा नपुंसकवेद का क्षय होने से बारह कर्मो का नववां सत्तास्थान... तथा स्त्रीवेद का क्षय होने से ग्यारह (11) कर्मो का दशवां सत्तास्थान होता है... एवं हास्यषट्क (6) का क्षय होने से पांच (5) कर्मो का ग्यारहवा सत्तास्थान... और पुरुषवेद का क्षय होने से चार कर्मो का बारहवा सत्तास्थान होता है... तथा संज्वलन क्रोध के क्षय से तीन कर्मो का तेरहवा, संज्वलन मान के क्षय से दो कर्मो का चौदहवा, एवं संज्वलन माया के क्षय से एक कर्म का पंद्रहवां (15) सत्तास्थान होता है... और शेष एक संज्वलन लोभ का भी क्षय हो तब मोहनीयकर्म की सत्ताका सर्वांश क्षय होने से मोहनीयकर्म का अभाव हो जाता है... अब आयुष्य कर्म का सामान्य से दो सत्तास्थान होते हैं... वे इस प्रकार- परभव के आयुष्य का बंध होते समय एवं बंध होने के बाद दो आयुष्य की सत्ता होती है अतः यह पहला सत्ता स्थान... एवं जब तक परभव के आयुष्य का बंध नहिं होता है तब तक वर्तमान भव के एक आयुष्य की सत्तावाला दुसरा सत्तास्थान... अब नाम-कर्म के बारह सत्तास्थान होते हैं... वे इस प्रकार पहला - 93 कर्म सातवां . - 79 कर्म दुसरा - 92 कर्म आठवां - - 78 कर्म तीसरा - 89 कर्म नववां - . 76 कर्म चौथा - 88 कर्म दशवां - 75 कर्म पांचवा - 86 कर्म ग्यारहवां 9 कर्म छट्ठा - 80 कर्म बारहवां 8 कर्म... उन में पहले सत्तास्थान में त्र्यानबे (93) कर्म इस प्रकार से होते हैं... 4 गति 6 संहनन (संधयण) जाति 5 वर्ण शरीर 2 गंध सघातन