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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका #1-3-1-5 (11) 229 5. 6 . बंधन संस्थान अंगोपांग 4 2 32 स्पर्श आनुपूर्वी विहायोगति = 65 in 5 w g 6 अगुरुलघु-१, उपघात-२, पराघात-३, उच्छ्वास-४, आतप-५ और उद्योत-६... 20 1 प्रत्येक शरीर 1 साधारण शरीर 2 त्रस 12 स्थावर शुभ . 13 अशुभ सुभग 14 दुर्भग सुस्वर 15 दुःस्वर सूक्ष्म . 16 बादर पर्याप्तक अपर्याप्तक स्थिर 18 अस्थिर आदेय ___ अनादेय 10 यश:कीर्ति / 20 अयशः कीर्ति... निर्माण नाम कर्म एवं तीर्थकर नाम कर्म... 65 + 6 + 20 + 2 = 93 . यह त्र्यानबे (93) कर्मो का पहला सत्तास्थान होता है... (2) तीर्थंकर नाम कर्म के अभाव में 92 कर्मो का दुसरा सत्तास्थान (3) पूर्वोक्त 93 कर्मो में से आहारक चतुष्टय (4) याने 1. आहारक शरीर, 2. आहारक अंगोपांग, 3. आहारक संघातन, 4. आहारक बंधन... इन चार कर्मो के अभाव में 89 कर्मो का तीसरा... इन 89 कर्मो में से तीर्थंकर नामकर्म के अभाव में 88 कर्मो का चौथा सत्तास्थान होता है... (5) इन 88 कर्मो में से देवगति एवं देवानुपूर्वी का उद्वलन हो तब 86 कर्मो का पांचवा सत्तास्थान... अथवा तो- 80 कर्मो की सत्तावाला प्राणी यदि नरकगति प्रायोग्य कर्मबंध करता है तब नरकगति, नरकानुपूर्वी, वैक्रिय शरीर, वैक्रिय अंगोपांग, वैक्रिय संघातन एवं वैक्रिय बंधन... यह छह (6) कर्मो का बंधन करने पर भी 86 कर्मो का सत्तास्थान होता है... अथवा तो 82 कर्मो की सत्तावाला प्राणी देवगति प्रायोग्य बंध करता है तब भी 86 (1) (4)
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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