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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-3-1 - 4 (112) 223 है; और जिसके मन में परमात्मा की तन्मयता एवं एकरूपता नहीं है, वह मोह के वश संसार में प्ररिभ्रमण करता है। विषयों की आसक्ति एवं मोह के कारण वह धर्म के स्वरूप को नहीं समझ पाता; इसलिए वह बार-बार जन्म-मरण के प्रवाह में बहता हुआ विभिन्न दुःखों का संवेदन करता है। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त “सिउसिणच्चाई" पद का पांचों आचार के अनुसार भी अर्थ किया जाता है। वह इस प्रकार है ज्ञानाचार विषयक-आगम, ग्रंथ आदि को मन्दता से पढ़ना शीत कहा जाता है और अतिशीघ्रता से पढना उष्ण। ये दोनों दोष हैं, अत: अतिमन्द एवं अतिशीघ्रता का त्याग करके आगम आदि को ज्ञानाचार की पद्धति से पढ़ना चाहिए। २-दर्शनाचार विषयक दर्शन परीषह शीत कहा है और आक्रोश आदि को उष्ण। अथवा सत्कार आदि परीषह को शीत और वध परीषह को उष्ण कहा है इन सब परीषहों को शान्तभाव से सहन कर लेना चाहिए। ३-चारित्राचार विषयक-शीतोष्ण-अनुकूल या प्रतिकूल स्पर्शों के द्वारा संयम से विचलित नहीं होना। ४-तपाचार विषयक-आगम में ब्रह्मचर्य को सर्वश्रेष्ठ तप कहा है। अत: उसकी सुरक्षा के लिए शीतोष्ण स्पर्श वाली योनि (स्त्री) से सम्बन्ध न करे। ५-वीर्याचार विषयक-मन्दगति को शीत और अति शीघ्र गति को उष्ण कहा है। साधु को अति मन्द एवं शीघ्र गमनागमन का त्याग कर देना चाहिए किंतु ईर्यासमिति से गमनागमन करना चाहिये... इस के अतिरिक्त पंडितवीर्य ज्ञानबल को शीत और बालवीर्य-अज्ञान को उष्ण कहा है। प्रथम का फल निर्वाण है और द्वितीय का संसार परिभ्रमण। अत: बालवीर्य का परित्याग करके ज्ञान की साधना में संलग्न होना चाहिए। फरूसयं नो वेएई' का अर्थ है-मोक्षाभिलाषी पुरुष कठोर परीषहों को दुःख रूप नही; किंतु मोक्ष का हेतु मानता है। यदि तप साधना से शरीर में कोई वेदना हो जाए तब शांतभाव से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहता है। ___ 'वेरोवरए' का अर्थ है-वैर से निवृत्त होना। वैर से निवृत्त व्यक्ति ही आत्म विकास के पथ पर आगे बढ़ सकता है और निर्वैरता के कारण ही वह अपनी संयम-साधना में सदा सजग रहता है। 'दुक्खा पमुक्खसि' इस पद का तात्पर्य यह है कि- वैर-विरोध से निवृत्त व्यक्ति ही
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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