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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 1 - 3 -1 - 1 (109) 209 श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 3 उद्देशक - 1 卐 भावसुप्तः // I * सूत्र // 1 // // 109 // 1-3-1-1 सुत्ता अमुणी, सया मुणिणो जागरंति // 109 // II संस्कृत-छाया : सुप्ता अमुनयः, सदा मुनयः जाग्रति // 109 // III सूत्रार्थ : __ जो मुनी नहिं हैं वे सोये हुए हैं और मुनिलोग हमेशां जागते रहते हैं // 109 // IV टीका-अनुवाद : . इस सूत्र का इससे पूर्व के सूत्र के साथ रहे हुए संबंध को कहते हैं... वह इस प्रकारपूर्व के सूत्र के अंत भाग में कहा था कि- इस संसार में दुःखी प्राणी दुःखों के हि आवर्ती में परिभ्रमणा करतें हैं इत्यादि... अन्यत्र भी कहा है कि- इस विश्व में सभी प्राणीओं को दुरंत अज्ञान-महारोग के सिवा और कोइ दु:ख का कारण नहि हैं ऐसा मेरा मानना है... इत्यादि... यहां सुप्त याने शयन करना... वह दो प्रकार से है... 1. द्रव्य से शयन करना... 2. भाव से सो जाना... उनमें द्रव्य से शयन करना याने निद्रा एवं प्रमादवाले होना... तथा भाव से शयन करना याने मिथ्यात्व और अज्ञान स्वरूप मोहानिद्रा से मूर्छित होना... इसलिये कहा कि- अमुनी याने मिथ्यादृष्टि प्राणी सदा सम्यग् ज्ञानवाले अनुष्ठान से रहित होने के कारण से “भावसुप्त' हैं और जो मुनी हैं वे सम्यग् बोधवाले होने से मोक्षमार्ग में चलते हैं अत: वे सर्वदा (हंमेशा) हितकी प्राप्ति एवं अहित के त्याग स्वरूप धर्मानुष्ठान में तत्पर हैं... इसीलिये वे रात्रि के दुसरे एवं तीसरे प्रहर में द्रव्य से निद्रा में होने पर भी भाव से तो जाग्रत हि हैं... अब यह भावनिद्रा एवं जागरण के विषय में नियुक्तिकार स्वयं गाथा कहते हैं नि. 212 अमुनी सदा सोये हुए हैं और मुनी रात्रि के द्वितीय एवं तृतीय प्रहर में सोये हो तब
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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