________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 2 - 6 - 5/6 (102/103) म 183 संयम जीवन में प्रसन्न हो... मुनी मौन याने संयम को ग्रहण करके कर्म-शरीर को आत्मा से अलग (भिन्न) करे... तथा मुनी नीरस एवं रुक्ष आहार का भोजन करते हैं, ऐसे वीर एवं समत्वदर्शी मुनी ओघ याने संसार तैरतें हैं... और तीर्ण, मुक्त, विरत और विख्यात होते हैं ऐसा हे जंबू ! मैं (सुधर्मास्वामी) तुम्हें कहता हुं... // 102-103 // IV टीका-अनुवाद : रति और अरति को दूर करके वीर मुनी अच्छे शब्दादि विषयों में राग नहि करता है, और बुरे शब्दादि में द्वेष भी नहि करता है... अत: अच्छे या बुरे शब्दों एवं स्पर्शों को शमभाव से सहन करनेवाले हे मुनी ! आप निर्वेद पाओ ! और संयम में प्रसन्न रहो ! यहां सारांश यह है कि- अच्छे शब्दों को सुनकर मुनी राग न करें, और बुरे शब्दों को सुनकर द्वेष न करें... यहां पांच विषयों में आदि और अंतिम विषय का ग्रहण करने से बीचवाले शेष रूप, रस एवं गंध के विषय में भी वीर मुनी राग-द्वेष न करें ऐसा स्वयं हि समझ लें... अर्थात् कोइ भी प्रकार के विषयों में राग या द्वेष न करें किंतु शमभाव से सहन करें... कहा भी है कि- अच्छे या बुरे शब्द श्रोत्र याने कान में आने पर श्रमण-मुनी रागवाला या द्वेषवाला न हो... इसी प्रकार अच्छे या बुरे रूप में, गंध में, रस में और स्पर्श में मुनी राग या द्वेष न करे.. अब प्रत्यक्ष सामने रहे हुए शिष्य को गुरुजी कहते हैं कि- हे शिष्य ! अच्छे या बुरे शब्दादि विषयों को सहन करनेवाले तुम असंयम में होनेवाली तुष्टि में निर्वेद पाओ, अर्थात् जुगुप्सा करो... नंदी याने ऐश्वर्य-वैभव स्वरूप मन की तुष्टि याने संतोष-प्रसन्नता... अर्थात् इस मनुष्य-लोक में जीवित याने असंयम जीवित की खुसी, हर्ष एवं प्रसन्नता की निंदा करो... वह इस प्रकार- मुझे यह धन-समृद्धि आदि प्राप्त हुइ थी, प्राप्त हुइ है और प्राप्त होगी इत्यादि विकल्पोंवाली नंदी याने प्रसन्नता की निंदा करो जैसे कि- पापकर्म के हेतु और अस्थिर ऐसी इस धन-समृद्धि से क्या लाभ ? अर्थात् कुछ नहि.... कहा भी है कि- यदि धन-वैभव है तो उस में मद-अभिमान क्यों ? और यदि वैभव का नाश हुआ है तो उस में खेद क्यों ? क्योंकि- मनुष्यों का यह धन-वैभव, हाथ में रहे हुए गेंद की तरह आता जाता रहता है... इस प्रकार रूप-बल आदि में भी सनत्कुमार चक्रवर्ती के दृष्टांत से समझीयेगा... अथवा भूतकाल में हुए पांचों हि अतिचारों की निंदा करें... वर्तमानकाल में होनेवाले पांच अतिचार का संवर करें एवं भविष्यत्काल में संभवित इन पांचों अतिचारों का प्रत्याख्यान (निषेध) करें... किंतु ऐसा मुश्केल कार्य करने के लिये आलंबन क्या लें ? इस प्रश्न के उत्तर में कहतें हैं कि- मुनी संयम का आलंबन लेकर कर्मों को आत्मा से दूर करें... तीनो काल के स्वरूप