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________________ 156 // 1-2 - 5 -7 (94) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन रखना परिग्रह है; आचार्य उमास्वाति ने भी मूर्छा-ममत्व भावना को हि परिग्रह कहा है। स्थविरकल्पवाले साधु संयम-साधना काल में उपकरणों का सर्वथा त्याग नहीं करते, क्यों कि- संयम में प्रवृत्त होने के लिए वस्त्र, पात्र, तृण-घास, फलक, मकान आदि की आवश्यकता होती है। इन सब साधनों का सर्वथा त्याग तो १४वें गुणस्थान में ही संभव हो सकता है, जहां पहुंचकर साधक समस्त कर्मो एवं कर्म जन्य, मन, वचन एवं शरीर का भी त्याग कर देता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि- जब तक शरीर का अस्तित्व है, तब तक साधक को वस्त्र-पात्र आदि बाह्य उपकरणों का आश्रय लेना पडता है। इसलिए सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में यह स्पष्ट कर दिया है कि- वस्त्र-पात्र आदि रखना परिग्रह नहीं है; किंतु-उसमें राग-द्वेष एवं ममत्व भाव रखना परिग्रह है। अतः भगवान की यह आज्ञा है कि- साधक उपकरणों में आसक्ति न रखे। इस बात को सूत्रकार ने 'एस मग्गे आयरिएहिं पवेइए' इस वाक्य के द्वारा व्यक्त किया है कि- उपरोक्त मोक्ष-मार्ग आर्यपुरुषों द्वारा प्ररूपित है। तीर्थंकर-गणधर आदि आप्तपुरुष हि आर्य है... अत: विचारशील व्यक्ति को आर्य द्वारा प्ररूपित मार्ग पर निद्वंद्व भाव से गतिशील होना चाहिए। और अपने आपको समस्त पाप कर्मों से सदा अलिप्त रखना चाहिए। यहां उद्देशक के मध्य में 'त्तिबेमि' का प्रयोग प्रस्तुत प्रभेद-अधिकार की समाप्ति के लिए हुआ है। ___प्रस्तुत सूत्र में परिग्रह के त्याग की बात कही गई है। परिग्रह का, त्याग तभी संभव है, जबकि- लालसा-वासना एवं आकांक्षा का त्याग किया जाएगा। अतः सूत्रकार महर्षि आगामी सूत्र में काम-वासना के स्वरूप को कहेगें... I सूत्र // 7 // // 94 // 1-2-5-7 कामा दुरतिक्कमा, जीवियं दुप्पडिवूहगं, कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ, जूरइ, तिप्पड़, परितप्पइ // 94 // II संस्कृत-छाया : कामाः दुरतिक्रमाः, जीवितं दुष्प्रतिबृंहणीयम्, कामकामी खलु अयं पुरुषः, स शोचते (शोचति) खिद्यते, तेपते, परितप्यते // 94 // III सूत्रार्थ : कामभोग दुरतिक्रम हैं, और जीवित उपबृंहणीय नहि है, निश्चित हि कामभोग का कामी यह पुरुष अज्ञ है, अतः वह अज्ञानी पुरुष शोक करता है, खेद पाता है, क्षीण होता है, और परिताप को पाता है // 94 //
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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