________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-2-4-4(87) 135 से प्रगट होनेवाले केवलज्ञान तथा अव्याबाध सुख स्वरूप है... ___ अतः ऐसे आत्मतत्त्व की प्राप्ति जिससे हो वह आदान याने संयमानुष्ठान... अथवा रेत के कवल को चबाने (भक्षण) के समान इस संयमानुष्ठान के आचरण में कभी कहिं आहारादि का अलाभ हो तब वह मुनी खेद नहिं करता है... वह इस प्रकार- “यह गृहस्थ धन-धान्य से समृद्ध है तो भी दान के आये हुए अवसर में मुझे कुछ भी आहारादि नहि देता है" ऐसा कहकर वह मुनी कोप न करें... किंतु वह मुनी ऐसा सोचे कि- मेरे हि अलाभोदय स्वरूप कर्मो के यह परिणाम है, अत: अहार आदि के अलाभ से कर्मो के क्षय करने के लिये तत्पर ऐसा मुझे अशुभ कर्मो के क्षय में समर्थ ऐसा तप होगा... अत: मेरा कुछ भी बिगडा नहि no . . और कभी कुछ थोडा या रुक्ष भोजन प्राप्त हो तब निंदा न करें... यह बात अब कहते हैं- थोडा याने अपर्याप्त आहार आदि की प्राप्ति हो तब दान देनेवाले दाता की अथवा दान-अन्न-आहार की निंदा न करें... जैसे कि- कोइक गृहस्थ अति थोडा सिक्थ याने अन्न आहार लावे, तब ऐसा न कहे कि- “पकाया हुआ चावल स्वरूप भिक्षा लाओ... अथवा नमकवाला आहार लाओ... हमारे पास अन्न नहिं है अतः हमें आहार दो" इत्यादि उच्छृखल छात्र की तरह न करें... . तथा कभी गृहस्थ भोजन न दें तब वहां से वापस लौटें, क्षण मात्र भी वहां खडे न रहें, और जरा सा भी दुर्ध्यान न करें, पुकारते (चिल्लाते) हुए न निकलें, और उन स्त्रीयों की निंदा भी न करें... जैसे कि- धिक्कार हो तुम्हारे गृहवास में इत्यादि... तथा भिक्षा प्राप्त होने पर वैतालिक- भाट चारण की तरह वहां दान देनेवाले की विभिन्न आलापों से प्रशंसा भी न करें... अब इस उद्देशक का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि- साधु प्रव्रज्या में उद्वेग न करें, भिक्षा प्राप्त न होने पर कोप न करें, थोडी भिक्षा प्राप्त होने पर निंदा न करें और भिक्षा का निषेध करने पर वापस लौटना इत्यादि मुनिजनों का जो उचित आचरण है, ऐसा उत्तम आचरण अनेक कोटि जन्मों में भी दुर्लभ है, अत: दुर्लभ ऐसे संयम जीवन को प्राप्त करके हे मुनी ! तुम अपनी आत्मा को संयम में स्थापित करो ! इस प्रकार गुरुजी शिष्य को उपदेश देते हैं, अथवा साधु स्वयं हि अपने आत्मा का इस प्रकार अनुशासन करे... इति ब्रवीमि... का अर्थ पूर्ववत् समझीयेगा... V. सूत्रसार : भोग का अर्थ केवल काम-वासना एवं काम-क्रीडा ही नहीं है, प्रत्युत भौतिक पदार्थों