________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी-हिन्दी-टीका // 1-2 - 3 - 2 (79) // 109 इसी प्रकार बहेरापना भी कर्मों के कारण से यह प्राणी अनेक बार प्राप्त करता है... बहेरेपने के कारण से प्राणी सत् और असत् को न सुन शकने के कारण से इस जन्म तथा जन्मांतर के इष्ट फलवाले क्रियानुष्ठान में शून्यता को धारण करता है... कहा भी है कि- धर्मकथा के श्रवण स्वरूप मंगल से रहित तथा लोगों की बात सुनने के व्यवहार से बाहर रहा हुआ बहेरा मनुष्य-प्राणी इस जगत में ठीक तरह से जीवन कैसे निभाएगा ? क्योंकि- इस विश्व में बोले जा रहे सभी शब्द जिसके लिये स्वप्न में प्राप्त कीये हुए धन की तरह निष्फल हि होते हैं... तथा मात-पिता एवं अपनी पत्नी और बाल बच्चों के मधुर वचनों का श्रवण न हो शकने से बहेरा मनुष्य जीवित होने पर भी मृतक के समान हि है अत: ऐसे उसके जीवित रहने से क्या फल ? इसी प्रकार मुंगेपने से भी प्राणी एकांत हि दुःखों का संवेदन करता है... कहा भी है कि- मुंगापना निश्चित हि दुःखदायक अपयश:कीर्तिकारक तथा सभी लोगों से पराभव देनेवाला है तो भी मूढ लोग कर्मो ने कीये हुए ऐसे पराभव को क्यों नहि देखतें ? तथा काणा-पना भी ऐसा हि है... कहा भी है कि- एक आंख से काणा मनुष्य अर्थात् एक आंख से नीची विषम या उंची दृष्टिवाला मनुष्य, संसार के रागी लोगों को भी वैराग्य (नाराजगी) के कारण होते हैं, उनका चित्र या प्रतिमा 'किसीके मनको प्रिय नहिं होतें हैं, तो फिर वह सामने प्रत्यक्ष हो तो कैसे अच्छा लगेगा ? इसी प्रकार हाथों में वक्रता आदि स्वरूप कुंटत्व... तथा वामन स्वरूप कुब्जत्व... तथा पीठ का बहार होना स्वरूप वडभत्व... कालापना रूप श्यामत्व... और चित्र-विचित्र लक्षणवाला शबलत्व... इत्यादि जन्म से हो या बाद में किसी कारण से अंधत्व आदि होने में कर्माधीन यह संसारी जीव बहोत प्रकार के दुःखों का संवेदन करता है... तथा कल्याणकारक कार्यों मे आलस और विषय क्रीडामें आसक्ति स्वरूप प्रमाद के कारणों से यह प्राणी संकट विकट शीत उष्ण आदि विभिन्न भेदवाली योनीयों में उत्पन्न होता है अर्थात् चोरासी (84) लाख योनीयों में उत्पन्न होने स्वरूप संबंध बनाये रखता है... अथवा जन्मांतर के बांधे हुए आयुष्य के अनुसार मरण होते हि विविध प्रकार की योनीयों की तरफ दौडता है... तथा वहां विभिन्न प्रकार के दुःखदायक स्पर्श का अनुभव करता है... इस प्रकार उच्चगोत्र से होनेवाले मान से विनष्ट चित्तवाला अथवा नीचगोत्र के कारण से होनेवाले दीन-भाववाला अथवा अंधापना, बहेरापना को पाया हुआ वह प्राणी अपने कर्तव्य को जानता नहि है, कर्मो के फल को भी जानता नहि है, तथा संसार की नीचता को भी समझ नहिं शकता, तथा अपने हित और अहित को नहि समझ शकता तथा उचितता को भी नहि समझ पाता है...