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________________ 108 // १-२-3-२(७९)卐 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन दुःखों के परिहार (त्याग) तथा सुखों की झंखनावाले इन प्राणीओं में आत्मीय भाव बनाकर हिंसादि पापस्थानों का त्याग करने के द्वारा आत्मा को पांच महाव्रतों में स्थापित करें... और उन महाव्रतों के परिपालन के लिये उत्तरगुणों का भी परिपालन करना चाहिये... अतः उपदेश देते हैं कि- पांच समिति से समित ऐसा साधु अंधत्व आदि के कारण स्वरूप अशुभ कर्मो को गहराइ से देखें... और जीवों को साता प्रिय है ऐसा आत्म-संवेदन करें... सम् + इ + ति = समिति... यह समितियां पांच है... 1. ईर्यासमिति, 2. भाषा समिति, 3. एषणासमिति, 4. आदान-निक्षेप समिति और 5. उत्सर्ग याने पारिष्ठापनिका समिति... उनमें- प्राणातिपातविरमण व्रत के परिपालन के लिये ईर्यासमिति... असत्य कथन के नियम की सिद्धि के लिये भाषासमिति... अचौर्यव्रत के परिपालन के लिये एषणासमिति... और शेष दो समितियां सभी व्रतो में श्रेष्ठ ऐसे अहिंसा व्रत की सिद्धि के लिये है... इस प्रकार पांच महाव्रतवाला साधु महाव्रतों की संरक्षा करनेवाली पांच समितियों से समित होता है और सद्भाव के साथ प्राणीओं के साता आदि को आत्मीयभाव से देखता है... अथवा- वह साधु हैं, कि- जो पदाथों को यथावस्थित देखे, जैसे कि- संसार के उदर में परिभ्रमण करनेवाले प्राणी अंधत्व आदि अनेक अवस्थाओं का संवेदन करतें हैं... द्रव्य और भाव के भेद से अंध के दो प्रकार है... उनमें एकेंद्रिय बेइंद्रिय और तेइंद्रिय जीव द्रव्य और भाव दोनों प्रकार से अंध है तथा मिथ्यादृष्टि ऐसे चउरिंद्रिय पंचेंद्रिय आदि प्राणी केवल भावसे अंध है... कहा भी है कि- निर्मल विवेक चक्षुवाले और ऐसे निर्मल चक्षुवाले के साथ निवासवाले जीव अंध नहि है... इन दोनो के सिवा जगत में जो लोग विवेक-चक्षु की विकलता से अंध हैं वे यदि उलटे मार्ग में चलते हैं तब उनका क्या अपराध है ? क्योंकि- वे अज्ञ हैं... तथा जो सम्यग्दृष्टि लोग हैं किंतु यदि उनकी आंखे नष्ट हुइ है तब वे द्रव्य से अंध है... यदि उनकी आंखे अच्छी है तब वे न तो द्रव्य से अंध है, और न तो. भाव से अंध इस प्रकार जो प्राणी द्रव्य एवं भाव से अंध है, वे एकांत = निश्चित हि दुःख पातें हैं... कहा भी है कि- अंध प्राणी जीवित होने पर भी मरे हुए के समान हि है, क्योंकिवह सभी क्रियाओं में परतंत्र है... उसका सूर्य हमेशा अस्त हुआ हि है, और वह सदैव हि अंधकार के समुद्र में डूबा हुआ है... तथा दोनो लोक के संकट स्वरूप अज्ञान-अग्नि में जल रहे अंगवाले तथा अन्य की लकडी के सहारे चलनेवाले अंध को देखकर किसको उद्वेग वैराग्य न हो ? जैसे कि- भयानक काले नागों से भरे हुए गहरे गड्ढे (गर्ता) में रहा हुआ प्राणी दुःख पाता है वैसे हि अंधत्व की गर्ता में पड़ा हुआ अंध (अज्ञ) प्राणी दुःखों को पाता है...
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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