________________ 102 1 -2-3-1(78) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन इस प्रकार उच्चगोत्र के उद्वलन से कलकल भाव को प्राप्त वह प्राणी अनंतकाल पर्यंत एकेंद्रिय में हि रहता है... अथवा उद्वलन न होने पर भी वह प्राणी तिर्यंचगति में अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल पर्यंत रहता है... और वह (काल-समय) एक आवलिका के असंख्येय भाग प्रमाण समयों की संख्या प्रमाण असंख्य पुद्गल परावर्त्त काल प्रमाण है... प्रश्न- पुद्गल परावर्त का स्वरूप क्या है ? उत्तर- संसार के उदर में रहे हुए पुद्गलों को जब कोइ एक जीव औदारिक, वैक्रिय, तैजस, भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण (कर्म) रूप से ग्रहण करके आत्मसात् परिणत करे, तब उस समय को पुद्गल परावर्त कहतें हैं... ऐसा कितनेक आचार्य कहतें हैं... अन्य आचार्य ऐसा कहतें हैं कि- पुद्गलपरावर्त द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से चार प्रकार का है... और वे चारों सूक्ष्म और बादर भेद से दो दो प्रकार से है... उनमें द्रव्य से बादर पुद्गल परावर्त का स्वरूप इस प्रकार है कि- जब कोइ एक जीव औदारिक वैक्रिय तैजस और कार्मण इन चारों प्रकार से सभी पुद्गलों को ग्रहण करके त्याग करता है तब द्रव्य से बादर पुद्गल परावर्त्त होता है... और जब कोई एक जीव चारों में से कोई भी एक शरीर रूप से सभी पुद्गलों को ग्रहण करके त्याग करने स्वरूप स्पर्श करता है तब द्रव्य से सूक्ष्म पुद्गल परावर्त्त होता है... // अब क्षेत्र से बादर पुद्गल परावर्त्त- वह इस प्रकार- जब कोइ एक जीव क्रम या उत्क्रम से लोकाकाश के सभी आकाश प्रदेशों को मरण से स्पर्शता है तब क्षेत्र से बादर पुद्गल परावर्त होता है, और जब कोइ एक जीव मरण के द्वारा लोकाकाश के सभी प्रदेशों को अनुक्रम से स्पर्शता है तब क्षेत्र से सूक्ष्म पुद्गलं परावर्त्त होता है... // 2 // काल से बादर पुद्गल परावर्त इस प्रकार है कि- जब कोइ एक जीव उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीकाल के सभी समयों को क्रम या उत्क्रम से मरण के द्वारा स्पर्श करता है तब काल से बादर पुद्गल परावर्त होता है... और जब कोइ एक जीव उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के सभी समयों को अनुक्रम से हि मरण के द्वारा स्पर्श करता है तब काल से सूक्ष्म पुद्गल परावर्त होता है.. // 3 // .. अब भाव से बादर पुद्गल परावर्त्त- जब कोइ एक जीव अनुभाग याने रसबंध के सभी अध्यवसाय स्थानकों को क्रम या उत्क्रम से मरण के द्वारा स्पर्श करता है तब भाव से बादर पुद्गल परावर्त होता है... और जब कोइ एक जीव जघन्य रसबंध के अध्यवसाय स्थानक से लेकर अनुक्रम से सभी अध्यवसाय स्थानकों को मरण के