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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-2-3-1 (78) // 101 % 3D IV टीका-अनुवाद : - वह संसारी प्राणी मान-सत्कार के योग्य उच्चगोत्र में अनेक बार उत्पन्न हुआ है, तथा सभी लोगों से तिरस्कृत ऐसे नीचगोत्र-कर्म में भी बार बार (अनेकबार) उत्पन्न हुआ है... वह इस प्रकार- नीचगोत्र के उदय से प्राणी अनंतकाल तक तिर्यंचगति में रहता है... और वहां परिभ्रमण करते हुओ उस प्राणी को सत्ता में रही हुई ज्ञानावरणीयादि आठ कर्म की बीयानबे (92) प्रकृतियों में से उत्पन्न हुए तथाविध अशुभ अध्यवसायवाला वह प्राणी आहारक शरीर और उपांग तथा आहारक बंधन और संघातन तथा देवगति और अनुपूर्वी तथा नरकगति और अनुपूर्वी तथा वैक्रिय चतुष्टय याने वैक्रिय शरीर, उपांग, बंधन और संघातन यह बारह (12) कर्म प्रकृतियों को सत्तामें से हटाकर अस्सी (80) कर्म प्रकृतिवाला होता है... वह प्राणी जब तेउकाय (अग्नि) और वायुकाय में उत्पन्न होता है तब मनुष्यगति और आनुपूर्वी दोनों को सत्ता में से हटाकर उच्चगोत्र का भी पल्योपम के असंख्येय भाग से उद्वलन करता है, इसीलिये अग्नि और वायु में प्रथम एक हि भंग-विकल्प है वह इस प्रकार- नीचगोत्र का बंध और उदय होता है, और उसी की हि सत्ता होती है... और वहां से निकलकर अन्य एकेन्द्रिय (पृथ्वी-जल आदि) में उत्पन्न होनेवालों को भी उत्पत्ति के प्रथम क्षण में यह प्रथम एक हि भंग-विकल्प होता है... तथा त्रसकाय में भी अपर्याप्त अवस्था में यह प्रथम एक भंग होता है... और जिन्हों ने उच्चगोत्र को सत्ता में से हटाया नहि है उन्हे दुसरा और चौथा भंग... वह इस प्रकार... गोत्रकर्म के सात भंग-विकल्प... विकल्प-भंग बंध सत्ता... गुणठाणा नीचगोत्र नीचगोत्र नीचगोत्र... नीच (नीचगोत्र) नीच नीच-उच्च 1 - 2 नीच उच्च उच्च-नीच 1 - 2 उच्च नीच नीच-उच्च 1 से 5 उच्च दोनो की सत्ता 1 से 10 उच्च दोनो की सत्ता 11 से 14 उच्चगोत्र 14 वे का अंतिम समय द्वितीय भंग में नीचगोत्र का बंध और नीचगोत्र का उदय तथा उच्च और नीचगोत्र की सत्ता. तथा चौथे भंग में उच्चगोत्र का बंध नीचगोत्र का उदय और सत्ता उच्च तथा नीच दोनों की... शेष चार विकल्प यहां तिर्यंच गति में नहिं होतें है.. क्योंकि- तिर्यंच जीवों में उच्चगोत्र के उदय का अभाव होता है... यह यहां तात्पर्य है... उदय m * 3 उच्च उच्च .
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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