________________ 64 1 - 2 - 1 - 3 (65) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन हम प्रत्यक्ष हि देखते हैं कि- मनुष्य वृद्ध होने के बाद प्रायः बोझ रूप बन जाता है। जब तक उसके शरीर में शक्ति रहती है, तब तक परिजन भी उसका आदर-सम्मान करते हैं, सदा उसकी सेवा-शुश्रूषा में लगे रहते हैं। यह आदर-सम्मान एवं सेवा-भक्ति उस व्यक्ति की नहीं, किंतु उससे प्राप्त होनेवाले भोगोपभोग की सामग्री की होती है। जब तक उसके द्वारा धन-संपत्ति के ढेर लगते हैं, भोगोपभोग के साधनों में अभिवद्धि होती रहती है. तब तक उसके गुणों के गीत गाए जाते रहते हैं। परन्तु प्रायः शारीरिक शक्ति के क्षीण होते ही सारी स्थिति बदल जाती है, सुनहरा अतीत कालुष्य में परिवर्तित हो जाता है। इस तरह दुनिया के अधिकांश संबंध स्वार्थ की भीति (दिवार) पर आधारित हैं। व्यक्ति अनेक पाप कार्य करके अपने परिवार का इस भावना से पालन-पोषण करता है कि- वृद्वावस्था में इनसे मुझे सुख मिलेगा। परन्तु उस अवस्था के आते ही वे परिजन उसके लिए संक्लेश का कारण बन जाते हैं और वह उनके लिए बोझ रूप बन जाता है। क्योंकि- वृद्धावस्था में शरीर की पर्याय बदल जाती है, शरीर की शक्ति एवं तेज घट जाता है। मानसिक सहिष्णुता भी कम हो जाती है, बात-बात पर बिगड़ने लगता है। खांसी से सारे घर के वातावरण को अशांत कर देता है, जगह-जगह कफ एवं खंखार थूक-थूक के कमरे को एवं आने जाने के मार्ग को गन्दा बना देता है। यह सारी स्थितियां लड़कों एवं पुत्र-वधुओं के लिए भयावनी बन जाती हैं। इतना हि नहिं, किंतु उस वृद्ध की विभिन्न आकांक्षाओं से तो वे परिजन चिंतित हो जाते हैं। उसकी इन्द्रियें शिथिल पड़जाती हैं, शरीर जर्जरित हो जाता है, किंतु एक आसक्ति अब भी क्षीण नहीं होती, वृद्धावस्था में आसक्ति-लालसा अधिक प्रबल होती है, वह आसक्ति याने तृष्णा, आकांक्षा, लालसा। इस वृद्ध अवस्था में भी विवेकहीन ऐसे उस वृद्ध की अभिलाषा बढ़ती ही रहती है। अन्य ग्रंथो में भी कहा है कि-"केश पककर के श्वेत हो गए, शरीर के सारे अंग जीर्ण-शीर्ण एवं शिथिल हो गए, मुंह में एक भी दांत नहीं रहा और लकड़ी के सहारे के बिना वृद्ध पुरूष न तो खड़ा रह सकता है और न गति कर सकता है, फिर भी उस वृद्ध की तृष्णा-आशा एवं अभिलाषा कभी भी शांत नहीं होती, किंतु अपरिमित प्रकार से बढती रहती है। अतः वह वृद्ध पुरुष तृष्णा की ज्वाला में जलता रहता है।" उसकी शारीरिक विकृत्तियों एवं आशा-आकांक्षाओं तथा खाने-पीने की लालसा से परिजन घबरा जाते हैं और वे दुःखित मन से उसकी मरण-समय की प्रतीक्षा करते हैं। मात्र प्रतीक्षा ही नहीं, किंतु भगवान से प्रार्थना भी करते हैं कि- इस बूढ़े को जल्दी उठा ले। इस प्रकार वह वृद्ध पुरूष बोझ रूप प्रतीत होने लगता है। घर में उसका कोई विशेष आदर-सम्मान नहीं करता और न उसकी बात पर विशेष ध्यान भी दिया जाता है। अपने ही घर में अपनी यह स्थिति देखकर उसे दु:ख एवं वेदना होती है। परन्तु परिजनों के सामने कुछ कहने का