________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१ - 1 - 1 - 1 // अपि तु करना चाहीये... अब उद्देशार्थाधिकार कहते हैं... शस्त्रपरिज्ञा नामके अध्ययनमें सात (7) उद्देशा है... 1. प्रथम उद्देशमें सामान्यसे जीवका अस्तित्व बताया है... पृथ्वीकाय का स्वरूप 3. अप्काय (जल) का स्वरूप अग्निकाय का स्वरूप वनस्पतिकाय का स्वरूप ___ त्रसकाय का स्वरूप 7. वायुकाय का स्वरूप इस प्रकार 2 से 7 याने 6 उद्देशमें विशेष रूपसे पृथ्वीकाय-अप्काय-अग्निकायवायकाय-वनस्पनिकाय एवं त्रसकायका अस्तित्व कह कर, उनकी हिंसा से कर्मबंध होता है अतः उनकी हिंसा न करें ऐसा चारित्रका प्रतिपादन किया है... सारांश यह हुआ कि- जीव है... जीवको हिंसा से कर्मबंध... और जीवोंकी हिंसा न करने से विरति = चारित्र... और चारित्र से मोक्षपद = निर्वाण... ___शस्त्र एवं परिज्ञा इन दो पदोंमें से प्रथम शस्त्र पदके निक्षेप करते हैं... नि. 38 शस्त्र पदका नामादि भेदसे चार निक्षेप होते हैं... नाम- स्थापना सुगम है... द्रव्य शस्त्र - ज्ञ शरीर, भव्य शरीर, तद्व्यतिरिक्त... तद्व्यतिरिक्त द्रव्य शस्त्र- खड्ग = तलवार. अग्नि, विष (जहर), स्नेह, अम्ल, क्षार एवं लवण (नमक) आदि भाव शस्त्र - दुष्ट अंतःकरण तथा वाणी एवं काया का असंयम... क्योंकि इन मन-वचनकायाके दुष्ट प्रयोगसे जीवोंकी हिंसा होती है... नि. 30 परिज्ञा पद के भी चार निक्षेपे होते हैं... नाम - स्थापना सुगम है...