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________________ म 1 - 1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन द्रव्य परिज्ञा के दो भेद है 1. ज्ञ परिज्ञा... 2. प्रत्याख्यान परिज्ञा... ज्ञ परिज्ञा के दो भेद... 1. आगम से... 2. नो आगम से... आगम से ज्ञ परिज्ञा = ज्ञाता किंतु अनुपयोगी... नो आगम से ज्ञ परिज्ञा = तीन प्रकार से है... ज्ञ शरीर... 2. भव्य शरीर... 3. तद्व्यतिरिक्त... 1. ज्ञ शरीर... ज्ञ परिज्ञा पदके ज्ञाताका मृतक-कलेवर. भव्य शरीर... ज्ञ परिज्ञा को जो समझेगा वह बालक... तद्व्यतिरिक्त ज्ञ परिज्ञा - जानने योग्य सचित्त आदि वस्तु = द्रव्य, यह द्रव्य परिज्ञा है... प्रत्याख्यान परिज्ञाके भी इसी हि प्रकार से चार निक्षेप है... नाम - स्थापना - सुगम है... तद्व्यतिरिक्त द्रव्य प्रत्याख्यान परिज्ञा - चारित्र के साधन मनुष्य देह (शरीर) एवं रजोहरण आदि उपकरण... भाव परिज्ञा - भी दो प्रकार से है... 1. ज्ञ परिज्ञा... 2. प्रत्याख्यान परिज्ञा... . आगम से भाव ज्ञ परिज्ञा = ज्ञाता एवं उपयोगी... नो आगम से भाव ज्ञ परिज्ञा = यहां नो शब्द मिश्रत्वका वाचक है अतः ज्ञान एवं क्रिया स्वरूप यह अध्ययन हि नोआगम से भाव ज्ञ परिज्ञा है... प्रत्याख्यान भाव परिज्ञा भी इसी प्रकार हि है... 1. आगम से... ज्ञाता एवं उपयुक्त... 2. नो आगम से... प्राणातिपात (हिंसा) से निवृत्ति याने मन, वचन एवं कायासे करण, करावण एवं अनुमोदन रूप से शुभ व्यापार = पंचाचार... इस प्रकार यहां नाम निष्पन्न निक्षेप पूर्ण हुआ... अब सुगमता से जानकारी हो इसलिये दृष्टांत = कथानकके माध्यमसे आचारांग आदि / सूत्रोंके प्रदानकी विधि कहते हैं... जैसे कि - कोइ एक राजा नये नगर की स्थापनाकी इच्छासे भूमिके खंडों को समान
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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