________________ 18 // 1-1-1-1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन ब्रह्मचर्यक अध्ययनोमें समावेश पाती हैं वह नियुक्तिकार स्वयं नियुक्ति-गाथाओंसे कहते हैं... नि. 12 पंचाचार प्रधान यह चूलिकाएं ब्रह्मचर्य में समाविष्ट होती हैं... और यह संग्रहित ब्रह्मचर्य शत्रपरिज्ञामें समाविष्ट हुआ है... नि. 13 इस शस्त्रपरिज्ञाका अर्थ छ:ह (6) जीवनिकायमें समवतरित हुआ, और छ जीव निकायका अर्थ पांच महाव्रतमें समवतरित हुआ है... नि. 14 पांच महाव्रत धर्मास्तिकायादि 6 द्रव्योमें, और सभी द्रव्योंके अगुरुलधु आदि पर्यायोंके अनन्तवे भागमें व्रतोंका अवतार हुआ है... महाव्रतोंका सभी द्रव्योंमे अवतार किस प्रकारसे होता है ? यह बात कहते हुए कहते हैं कि नि. 15 प्रथम महाव्रतमें : जीवनिकाय... द्वितीय एवं पंचम महाव्रतमें सभी द्रव्य... एवं तृतीय तथा चतुर्थ महाव्रत का समवतार इन सभी द्रव्यों के एक भागमें... महाव्रतोंका समवतार सभी द्रव्योंमें होता है किंतु सभी पर्यायोंमें नहिं... ऐसा क्यों ? इस बातका उत्तर देते हुए कहते हैं कि- संसारके अनन्तानन्त जीवात्माओंमें सभी मिलकर असंख्यात संयमस्थान हैं उनमें से जघन्य संयमस्थान में अविभाग-पलिच्छेदवाली बुद्धिसे यदि विभाग करें तब पर्यायकी दृष्टिसे अनन्त अविभाग पलिच्छेद होतें हैं यह बात पर्यायकी दृष्टिसे कही, और वे सर्व आकाश प्रदेशोंकी संख्यासे अनंतगुण होते हैं... अर्थात् सर्व आकाश प्रदेशोंका वर्ग करने पर जो संख्या प्राप्त हो उतना हि प्रथम संयम स्थानमें अविभाग पलिच्छेद होतें है... उसके बाद दुसरे तीसरे इत्यादि असंख्य संयम स्थानोमें अनंतभाग अधिक आदि वृद्धिसे षड्स्थानों (छठाणवडिया) के असंख्येय स्थानवाली श्रेणी होती है... इस प्रकार सर्व पर्यायवाले एक भी संयमस्थानको जानना छद्मस्थ लोगोंके लिये अशक्य है... तो फिर सभी संयम स्थानोंको जानना कैसे शक्य होगा ? अतः ऐसे अन्य कौनसे पर्याय हैं ? कि- जिसके अनंतवे भागमें व्रतोंका रहना होता है ? तो हां ! कुछ पर्याय ऐसे हैं कि- उन्हें जाने जा शकतें हैं, किंतु शेष अन्य सभी पर्याय तो केवलज्ञानी हि जानतें हैं...