________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-1-1 // जाता है... इस आचारांग सुत्रका प्रमाण अध्ययन एवं पदके माध्यमसे बताते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि नि. 11 इस आचारांग सूत्रमें ब्रह्मचर्य नामके नव अध्ययन हैं और पद की गीनती से 18000 पद प्रमाण यह सूत्र है... तथा हेय एवं उपादेय का बोध जिससे हो ऐसे इस आचारांग सूत्रको वेद भी कहते हैं... पंचाचार वास्तवमें आत्माके क्षयोपशम भाव स्वरूप हि है... और इस सूत्रमें पांच चूलिका भी संमीलित हैं... __ चूडा याने चूलिका... सूत्रमें जो अर्थ कहा गया है, उसमें जो शेष रह गया है वह चूलिका में लिखा है... प्रथम चूलिकामें सात अध्ययन है... उनके नाम निम्न प्रकारसे है 1. . पिंडैषणा शय्यैषणां 3. ईर्या भाषा वस्वैषणा पात्रैषणा अवग्रह प्रतिमा... द्वितीय चूलिका "सप्त सप्तिका' नाम से है तृतीय चूलिका का नाम "भावना'' है चतुर्थ चूलिका का नाम "विमुक्ति" है एवं पंचम चूलिका का नाम है “निशीथ-अध्ययन" आचारांग सूत्रके प्रथम श्रुतस्कंधमें नव अध्ययन है आचारांग सूत्रके द्वितीय श्रुतस्कंधमें 1-2-3-4 चूलिका है... निशीथाध्ययन स्वरूप पंचम-चूलिकाके प्रक्षेपसे यह आचारांग सूत्र पद परिमाणकी दृष्टिसे बहतर हुआ है और अनंत गम एवं पर्याय स्वरूप दृष्टि से “बहुतम" हुआ है.... अब उपक्रमके अंतर्गत समवतार द्वार कहते हैं... यह पांच चूलिकाएं जिस प्रकार नव