________________ 290 1 -1 - 7 - 1 (56) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन प्रदेशोंकी राशि = संख्या प्रमाण है... और शेष तीन राशि अलग अलग असंख्य लोकाकाशके प्रदेश प्रमाण होते हैं... वे इस प्रकार- पर्याप्त बादर अप्कायसे पर्याप्त बादर वायुकाय असंख्यगुण अधिक हैं... और अपर्याप्त बादर अप्कायसे अपर्याप्त बादर वायुकाय असंख्येय गुण अधिक है... तथा अपर्याप्त सूक्ष्म अप्कायसे अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय विशेषाधिक है... एवं पर्याप्त सूक्ष्म अप्कायसे पर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय भी विशेषाधिक हैं... अब उपभोग द्वार कहतें हैं... नि. 169 व्यजन = पंखो, भस्वा = धमण, आध्मात = फुकना, अभिधारण (हवा खाना) उसिंजन = फुत्कार (कुंक) और प्राणापान आदि... प्रकारसे मनुष्य वायुकायका उपभोग करता है... अब शस्त्र द्वार कहतें हैं... और वे शस्त्र द्रव्य-भाव भेदसे दो प्रकारके होते हैं... नि. 170 1. व्यजन पंखो, चामर, सुपडा, पत्ते, वस्त्र, खिडकीमें हवा खाना, गंध-चंदन, उशीर आदिके अग्नि - ज्वाला - ताप तथा प्रतिपक्ष वायु (शीतोष्णादि)... यहां प्रतिपक्षवायु स्वकायशस्त्र है... शेष परकायशस्त्र एवं उभयकायशस्त्र हैं, वे स्वयं विभागसे समझ लीजीयेगा... भावशस्त्र- दुःष्ट मन-वचन एवं कायाकी चेष्ट स्वरूप असंयम हि भावशस्त्र है... अब सकल नियुक्तिका उपसंहार करतें हैं... नि. 171 पृथ्वीकायमें जो जो द्वार कहे गये हैं वे सभी द्वार वायुकायमें भी समझीयेगा... इस प्रकार यह वायुकाय उद्देशककी नियुक्ति पूर्ण हुई... इस प्रकार यहां नाम निष्पन्न निक्षेप भी पूर्ण हुआ... अब सूत्रानुगम में अस्खलित रीतसे पदोंका उच्चार करना चाहिये... और वह सूत्र इस प्रकार है... I सूत्र // 1 // // 5 // पहू एजस्स दुगुंछणाए // 5 // II संस्कृत-छाया : प्रभुः एजस्य जुगुप्सायाम् // 56 //