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________________ श्री राजेन्द्र सबोधनी आहोरी-हिन्दी-टीका 1-1-6-6 (54) 283 "हमको मारेंगे" इस कारणसे वध करतें हैं... || 54 / / v टीका-अनुवाद : वह मैं सुधर्मास्वामीजी हे जंबू ! तुम्हें कहता हूं कि- विविध इच्छासे व्याकुल लोग अर्चा याने देहके लिये त्रसजीवका वध करते हैं... (आहार, अलंकार आदि प्रकारोंसे जिसकी अर्चा-पूजा की जाय वह अर्चा याने देह = शरीर...) वह इस प्रकार... विद्या और मंत्रकी साधना करनेवाले बत्तीस लक्षणवाले अक्षत-अंगवाले एवं सांगोपांग शरीरवाले पुरुषका वध करके विद्या या मंत्रको सिद्ध करतें हैं, अथवा तो दुर्गा आदि देवीओंके आगे बलिदान देते हैं... अथवा तो जिस किसीने विष (जहर) खाया हो उसके जहरको उतारनेके लिये हाथीको मार कर उसके शरीरमें रखते हैं, जीससे उसका जहर उतर जाय... 3. >> तथा अजिन याने चमडेकी खालके लिये- चित्ता, वाघ आदिको मारतें हैं... इसी प्रकार मांस, रुधिर, हृदय, पित्त, वसा, पिच्छ, पुच्छ, वाल, शृंग, विषाण, दांत, दाढ, नख, स्नायु, अस्थि (हड्डी) और, अस्थिमिंज- आदिके लिये भी सजीवोंका वध करतें हैं... वे इस प्रकार... 1. मांसके लिये- सूअर (भंड) आदिका वध करतें हैं... 2. त्रिशूलके आलेखनके लिये रुधिर लेतें हैं... साधक लोग हृदय लेकर मंथन करतें हैं... पित्त के लिये मोर आदिका वध करतें हैं... वसा = (मेद-मज्जा) चरबीके लिये वाघ मगर वराह आदि पिच्छे के लिये मोर गीदड आदि... पुच्छ के लिये रोझ आदि... वाल के लिये चमरी आदि... शृंगके लिये रुरु (हरिण) गेंडा आदि उनके शृंग पवित्र है ऐस मानकर यज्ञवाले लेते हैं... 10. विषाण के लिये हाथी आदि... दांतके लिये शृगाल (गीदड-लोमडी) आदि... उनके दांत तिमिरको नाश करनेवाले होतें हैं... इसलिये१२. दंष्ट्रा के लिये - वराह आदि... 13. नख के लिये वाघ आदि... 14. स्नायुके लिये गाय, महिष (भेंस) आदि... >>
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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