________________ 284 1 - 1 - 6 - 6 (54) / श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 15. 16. अस्थि (हड्डी) के लिये शंख, शुक्ति आदि.. अस्थिमिंज - महिष (पाडा) वराह आदि... इस प्रकार कितनेक लोग, कोइ न कोई प्रयोजनके कारणको लेकर, अस जीवोंका वध करतें हैं और कितनेक लोग गिरगिट (काचीडो) गृहकोकिला (गिरोली-छीपकली) आदि अस जीवोंको विना कारण हि मारतें हैं... कितनेक लोग “यह सिंह, साप, दुश्मनने हमारे स्वजनको मारा था" ऐसा शोचकर उन्हे मारतें हैं अथवा तो मुझे पीडा दी थी ऐसा शोचकर उन्हे मारतें हैं... कितनेक लोग “यह सिंह, साप आदि अभी हमको खा रहा है" ऐसा शोचकर उनहें मारतें हैं... और कितनेक लोग “यह हमको मारेंगे" ऐसा शोचकर साप आदि सजीवोंका वध करतें हैं... इस प्रकार अनेक प्रयोजनोसे त्रसजीवोंका संभवित वध कहकर, अब इस उद्देशकका उपसंहार करने के लिए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहेंगे... VI सूत्रसार : मनुष्य जब विकृत दृष्टिवाला होता है; तो वह अपने वैषयिक सुखों को साधने के लिए विभिन्न जीवोंकी अनेक तरह से हिंसा करता है / अपनी मनमानी करने में उसे, दूसरे प्राणियों के प्राणों की कोई चिन्ता एवं परवाह नहीं होती / अपनी प्रसन्नता, वैभवशीलता व्यक्त करने के लिए, मनोरंजन, ऐश्वर्य एवं रसास्वादके लिए अबुध व्यक्ति हज़ारों-लाखों प्राणियों का वध करते हुए ज़रा भी नहीं हिचकिचाता / कुछ व्यक्ति धन कमानेके लिए पशुओं का वध करते हैं, तो कुछ व्यक्ति अपने शरीरकी शोभा बढ़ाने के लिए अपने पेटको अनेक पशुओंका कब्रिस्तान ही बना डालते हैं / इस प्रकार अज्ञ लोगोंके, हिंसा करने के अनेक कारणों का वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है / प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- कुछ लोग अर्चा के लिए प्राणियों का वध करते हैं। अर्चा शब्द का पूजा और शरीर ये दो अर्थ होते हैं / विद्या-मन्त्र आदि साधने हेतु या देवीदेवता को प्रसन्न करने के बहाने 32 लक्षणों युक्त पुरुष या पशु का वध करते हैं / तथा शरीर को शृंगारनेके लिए अनेक जीवोंको मारते हैं / इस प्रकार वे पूजा एवं शरीर शृंगार दोनों के लिए अनेक प्रकारके पशुओं की हिंसा करते हैं / इसके अतिरिक्त चमड़े के लिए अनेक प्राणियों का वध किया जाता है / और उस मृग चर्म एवं सिंह के चर्म का कई सन्यासी भी आसन आदि के लिए, उपयोग करते हैं,