SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका // 1-1-4-1(32) 201 .नि. 120 बादर पर्याप्त अग्निकायके जीवोंकी संख्या क्षेत्र पल्योपमके असंख्येय भाग मात्रमें होनेवाले प्रदेशोंकी राशिकी संख्या प्रमाण हि हैं... किंतु वे बादर पर्याप्त पृथ्वीकायके जीवोंसे असंख्य गुणहिन हैं... शेष तीन राशि (1. अपर्याप्त बादर अग्निकाय, 2. पर्याप्त सूक्ष्म अग्निकाय 3. अपर्याप्त सूक्ष्म अग्निकाय) ओंकी संख्या पृथ्वीकायकी तरह समझ लीजीयेगा... तो भी कहतें हैं कि- बादर अपर्याप्त पृथ्वीकायसे बादर अपर्याप्त अग्निकाय जीव असंख्येय गुण हीन हैं... तथा सूक्ष्म अपर्याप्त पृथ्वीकायसे सूक्ष्म अपर्याप्त अग्निकाय जीव विशेष हीन है, और सूक्ष्म पर्याप्त पृथ्वीकायसे सूक्ष्म पर्याप्त अग्निकाय जीव भी विशेष हीन हैं... अब उपभोग द्वार कहतें हैं... नि. 121 . १..दहन = शरीर आदि अवयवोंके वात (वायु) आदिको दूर करनेके लिये... 2. प्रतापन - शीत (ठंडी) को दूर करनेके लिये... 3. प्रकाशकरण - प्रदीप-दीपक जलाकर प्रकाश करना... 4. भक्तकरण = ओदन = चावल आदि पकानेके लिये... 5. खेद - ज्वर एवं विसूचिका आदि पीडा-वेदनाको दूर करनेके लिये... इत्यादि अनेक प्रयोजनसे मनुष्य बादर अग्निकाय जीवोंका उपभोग करतें हैं... इस प्रकार उपस्थित प्रयोजनोंसे सतत आरंभ-समारंभमें प्रवृत्त गृहस्थ एवं नाम मात्रसे साधु ऐसे शाक्यादि मतवाले साधु विषय सुखकी कामना से अग्निकाय जीवोंकी हिंसा करतें हैं यह बात नियुक्तिकी गाथासे कहतें हैं... नि. 122 इन दहन आदि कारणोंके द्वारा अपने साता = विषय सुखोंकी कामना से बादर अग्निकाय जीवोंकी संघट्टन, परितापन एवं अपद्रावण स्वरूप हिंसा करतें हैं... दुःख होतें हैं... अब शस्त्र द्वार कहतें हैं... वह शस्त्र द्रव्य एवं भाव ऐसे दो प्रकारसे है... और द्रव्य शस्त्र भी समास एवं विभाग भेदसे दो प्रकारसे है... उनमें समास द्रव्यशस्त्रका स्वरूप कहतें हैं... नि. 123
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy