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________________ 200 // 1-1 -4 -1 (32) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन मिश्र भेदसे तीन प्रकारकी है... अग्निकाय जीवोंकी योनीयां सात लाख प्रकारकी कही गइ है... . अब लक्षण द्वार कहतें हैं... नि. 119 जीस प्रकार रात्रिके समय खद्योतक (जुगनू) चउरिंद्रिय प्राणीके शरीर, जीवके प्रयोग विशेषसे उत्पन्न हुइ शक्ति के कारणसे रात्रिमें चमकता है... इसी प्रकार अंगारे आदि अग्निकायके जीवोंके शरीरमें भी प्रकाश-तेज स्वरूप शक्तिका अनुमान हो शकता है... अथवा तो जिस प्रकार ज्वर (बुखार) वाले मनुष्यके शरीरमें गरमी दिखाई देती है, वह भी जीव की शक्ति विशेष हि मानी गई है... इसी प्रकार अग्निकाय जीवोंके शरीरमें उष्णता = गरमी होती है... क्योंकि- कोई मृत मनुष्यके कलेवरमें ज्वर (बुखार) नहिं होता है... इस प्रकार अन्वय (सद्भाव) और व्यतिरेक (अभाव) के माध्यमसे भी अग्निकाय सचित्त हि है... ऐसा शास्त्रोंके वचनसे स्पष्ट हि प्रतीत होता है... अब अनुमान प्रयोगसे अग्निकाय जीवोंकी सिद्धि करतें हैं... (1) सास्ना (गायके गले की गोदडी) और शृंग (शींगडे) आदि समूहकी तरह छेदन-भेदन हो शकने के कारणसे अंगारे आदि अग्निकाय अग्नि-जीवोंका शरीर हि है... खद्योतक (जुगनू) प्राणीके शरीर परिणामकी तरह शरीरमें रहा हुआ प्रकाश स्वरूप परिणाम, अंगारे आदि अग्निकायमें जीवके प्रयत्न विशेषसे हि प्रगट हुआ है... (3) ज्वर (बुखार) की गरमीकी तरह अंगारे आदि अग्निकायके शरीरमें होनेवाली उष्णता गरमी, आत्मा-जीवके प्रयोग विशेषसे हि मानी गइ. है... आदित्य (सूर्य) आदिमें रही हुइ उष्णतासे यह सिद्धांत अनेकांत (अनिश्चित) नहिं है, क्योंकि- सभी जीवोंके शरीरमें आत्माके प्रयोग विशेषसे हि उष्णताका परिणाम उत्पन्न होता है, अतः यह सिद्धांत सत्य है... (4) पुरुषकी तरह अपने योग्य आहार ग्रहण करनेके कारणसे वृद्धि एवं विकारको प्राप्त करनेवाला तेजः = अग्नि सचेतन हि है... इस प्रकारके लक्षणोंसे अग्निकायके जीवोंका निश्चय करना चाहिये... लक्षण द्वार कहनेके बाद अब परिमाण द्वार कहतें हैं...
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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