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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 1 -4 - 1 (32) 199 (प्रगट) होनेवाला इत्यादि... 3. अर्चिः = इंधनके साथ रहा हआ ज्वाला स्वरूप... 4. ज्वाला = अंगारेसे अलग हुइ जलती ज्वालाएं... 5. मुर्मुर = कोइ कोइ अग्निके कणवाला भस्म... बादर अग्निकायके यह पांच भेद है... यह बादर अग्निकाय-जीव अढाइ (2.1/2) द्वीप-समुद्र प्रमाण मनुष्य-क्षेत्रमें व्याघातके अभावमें पंद्रह (15) कर्मभूमिमें और व्याघात हो तब भी पांच महाविदेह क्षेत्रमें उत्पन्न होते हैं... इनके अलावा और कहिं भी बादर अग्निकाय नहिं होते हैं... उपपातकी दृष्टि से बादर अग्निकाय, लोकके असंख्येय भाग प्रमाण क्षेत्रमें हि उत्पन्न होते हैं... आगम-सूत्रमें भी कहा है कि- विस्तारकी दृष्टि से अढाइ (2.1/2) द्वीप-समुद्र तथा पूर्व-पश्चिम-उत्तर एवं दक्षिण दिशाओंमें स्वयंभूरमण समुद्र पर्यंत लंबाइ और उपर ऊर्ध्वलोक के 900 योजन, एवं नीचे अधोलोक के 900 योजन प्रमाण मध्यलोक के कपाटवाले क्षेत्रमें रहे हुए एवं बादर अग्निकाय में उत्पन्न होनेवाले जीवों हि बादर तेउकाय कहे जातें हैं, तथा तिर्यक्लोक स्वरूप थाले में रहे हुए बादर अग्निमें उत्पन्न होनेवाले जीव हि बादर अग्निकाय कहे जाते हैं... अन्य आचार्य तु ऐसा कहतें है कि- तिर्यक् (तीच्छे) लोकमें रहे हुए एवं अग्निकायमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंको बादर अग्निकाय कहे जातें है... इस व्याख्याने कपाट याने उर्ध्व एवं अधोलोकके बीचमें... 1800 योजन... किंतु इस व्याख्यानका अभिप्राय हम नहिं जानतें... कपाट स्थापना इस प्रकार- समुद्घातके द्वारा सर्व-लोकमें रहे हुए... और वे पृथ्वीकाय आदि जीव मरण समुद्घातके द्वारा जब बादर अग्निकायमें उत्पन्न हो रहे हो तब वे बादर अग्निकाय कहे जातें है, इस दृष्टिसे बादर अग्निकाय सर्वलोकमें रहे हुए हैं... जहां पर्याप्त बादर अग्निकाय होते हैं वहिं बादर अपर्याप्त अग्निकाय जीव भी उनके साथ (निश्रा) में उत्पन्न होतें हैं... ___ इस प्रकार सूक्ष्म एवं बादर अग्निकायके दो भेद हैं, पुनः वे पर्याप्त और अपर्याप्त भेदसे दो-दो प्रकारके होते हैं... और वे वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि भेदसे हजारों भेद स्वरूप विभिन्नताको पाकर संख्यात (सात) लाख योनि प्रमाण होतें हैं... अग्निकाय जीवोंकी संवृत और उष्ण योनि होती है... और वे भी सचित्त अचित्त एवं
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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