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________________ 198 1 - 1 - 4 - 1 (32) श्री राजे द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 1 उद्देशक - 4 तेऊकाय (अग्नि) तृतीय उद्देशक पूर्ण हुआ, अब चतुर्थ (चौथा) उद्देशकका आरंभ करते हैं... तृतीय उद्देशकमें साधुओं को साधुताकी प्राप्तिके लिये अप्कायकी परिज्ञा कही, अब अनुक्रमसे आये हुए तेजस्काय (अग्नि) के प्रतिपादनके लिये चतुर्थ-उद्देशकका आरंभ करतें हैं... इस उद्देशकके उपक्रम आदि चार अनुयोग द्वार तब तक कहने चाहिये कि- जब तक नाम निष्पन्न निक्षेपमें तेजः (अग्नि) उद्देशक ऐसा नाम है... वहां तेजस् (अग्नि) शब्दके निक्षेप आदि द्वार कहना चाहिये... उसमें पृथ्वीकायके समान हि निक्षेप आदि द्वार है, किंतु जहां विशेष है वह अब नियुक्ति-गाथाओंसे कहतें हैं... नि. 116 जितने द्वार पृथ्वीकायके है, उतने हि द्वार तेउकाय (अग्नि) के है, किंतु जहां जहां भिन्नता है, वह विधान, परिमाण, उपभोग एवं शस्त्र और लक्षण द्वार कहतें हैं.... नि. 117 इस जगतमें तेउकाय (अग्नि) के दो प्रकार है... 1. सूक्ष्म तेउकाय * 2. बादर तेउकाय. सूक्ष्म तेउकाय (अग्नि) संपूर्ण लोकमें है, और बादर तेउकाय मात्र अढाइ द्वीप-समुद्रमें हि है... नि. 118 बादर तेउकायके पांच प्रकार इस प्रकार है... 1. अंगारे 2. अग्नि 3. अर्चि 4. ज्वाला और 5. मुर्मुर... यह पांच प्रकार बादर तेउकाय (अग्नि) के सूत्रमें कहे गये है... 1. अंगारे - जहां धूम और ज्वाला न हो ऐसा जला हुआ इंधन... 2. अग्नि = इंधनमें रहा हुआ, जलन क्रिया स्वरूप, बीजली उल्का और अशनि (वज) के संघर्षसे उत्पन्न होनेवाला तथा सूर्यकांत मणीसे संसरण
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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