________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी-हिन्दी- टीका // 1-1-3 - 13 (31) 197 आरंभ के त्यागी को परिज्ञातकर्मा कहा है / वास्तव में यह सत्य है कि जिसे अप्काय संबन्धी ज्ञान ही नहीं है, वह उस के आरम्भ से बच नहीं सकता / उसकी प्रवृत्ति हिंसा जन्य ही होती है / और जिसे ज्ञान है वह उसके आरम्भ से दूर रहता है / न तो वह स्वयं अप्काय की हिंसा करता है, न दूसरे व्यक्ति को हिंसा के लिए प्रेरित करता है और न किसी हिंसा करने वाले व्यक्ति का ही समर्थन करता है / वह त्रिकरण त्रियोग से अप्काय के आरम्भ-समारम्भ का त्यागी होता है / वे अपने मन, वचन, काय के योगों को अप्काय के आरम्भ-समारम्भ से निरोध कर संवर एवं निर्जरा को प्राप्त करता है अर्थात् कर्म आगमन के द्वार को रोकता है, जिस से नए कर्म नहीं आते और पुरातनकर्मों का अंशतः क्षय करता है / ऐसे साधक को परिज्ञात कर्मा कहा है / अपरिज्ञात और परिज्ञात कर्मा व्यक्तियों की क्रिया में बहुत अन्तर रहा हुआ है / एक की क्रिया, अविवेक एवं अज्ञान पूर्वक होने से कर्म बन्ध का कारण बनती है, और दूसरे की क्रिया, विवेक युक्त होने से निर्जरा का कारण बनती है / इस लिए मुनि को चाहिए कि वह अप्काय के स्वरूप का बोध प्राप्त करके उसकी हिंसा का सर्वथा त्याग करे / अप्कायिक जीवों के आरम्भ का त्याग करने वाला ही वास्तव में मुनि कहलाता है / 'त्तिबेमि' का अर्थ प्रथम उद्देशक की तरह समझना चाहिए / // शस्त्रपरिज्ञायां तृतीयः उद्देशकः समाप्तः || 卐卐 :: प्रशस्ति : मालव (मध्य प्रदेश) प्रांतके सिद्धाचल तीर्थ तुल्य शझुंजयावतार श्री मोहनखेडा तीर्थमंडन श्री ऋषभदेव जिनेश्वर के सांनिध्यमें एवं श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिजी, श्रीमद् यतीन्द्रसूरिजी, एवं श्री विद्याचंद्रसूरिजी के समाधि मंदिर की शीतल छत्र छायामें शासननायक चौबीसवे तीर्थंकर परमात्मा श्री वर्धमान स्वामीजी की पाट -परंपरामें सौधर्म बृहत् तपागच्छ संस्थापक अभिधान राजेन्द्र कोष निर्माता भट्टारकाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. के शिष्यरत्न विद्वद्वरेण्य व्याख्यान वाचस्पति अभिधान राजेन्द्रकोषके संपादक श्रीमद विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. के शिष्यरत्न, दिव्यकृपादृष्टिपात्र, मालवरत्न, आगम मर्मज्ञ, श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम प्रकाशन के लिये राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिंदी टीका के लेखक मुनिप्रवर ज्योतिषाचार्य श्री जयप्रभविजयजी म. "श्रमण' के द्वारा लिखित एवं पंडितवर्य लीलाधरात्मज रमेशचंद्र हरिया के द्वारा संपादित सटीक आचारांग सूत्र के भावानुवाद स्वरूप श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिंदी टीका-ग्रंथ के अध्ययनसे विश्वके सभी जीव पंचाचारकी दिव्य सुवासको प्राप्त करके परमपदकी पात्रता को प्राप्त करें... यही मंगल भावना के साथ... "शिवमस्तु सर्वजगतः" वीर निर्वाण सं. 2528. // राजेन्द्र सं. 96. विक्रम सं. 2058.