________________ 164 卐१-१-3 - 1 (१९)卐 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अब विभागसे अपकाय-शस्त्र कहते हैं... नि. 114 - स्वकायशस्त्र परकायशस्त्र उभयकायशस्त्र नदीका जल, तालाबके जलका शस्त्र-. मिट्टी, तैल, क्षार आदि... कादव (जल सहित मिट्टी) आदि... (3) - भावशस्त्र प्रमादी मनुष्य (जीव) का दुष्ट मन, वचन एवं काया स्वरूप असंयम हि अप्काय जीवोंका भावशस्त्र है... शेष द्वार पृथ्वीकायकी तरह समझीयेगा, यह बात, अब नियुक्ति गाथासे कहते हैं नि. 115 शेष, निक्षेप, वेदना, वध, निवृत्ति आदि द्वार पृथ्वीकाय की तरह यहां अप्कायमें भी स्वयं समझ लीजीयेगा... इस प्रकार अप्कायके उद्देशककी नियुक्ति (निश्चित प्रकारसे अर्थकी घटना स्वरूप) कही... अब सूत्रानुगमके प्रसंगमें उच्चार (बोलने) में स्खलना न हो इस प्रकार सूत्रको पढना चाहिये... वह सूत्र निम्न प्रकार है... I सूत्र // 1 // // 19 // से बेमि, जहा अणगारे उज्जुकडे नियाय- पडिवण्णे अमायं कुश्वमाणे वियाहिए // 19 // II संस्कृत-छाया : तद् ब्रवीमि, यद्- सः यथा अनगारः ऋजुकृत: नियागप्रतिपन्नः अमायां कुर्वाण: व्याख्यातः // 19 / / III शब्दार्थ : से अणगारे-वह अनगार / जहा-जैसा होता है / से बेमि-वह मैं कहता हूं / उज्जुकड़े-संयम का परिपालक / नियायपडिवण्णे-जिस ने मोक्ष मार्ग को प्राप्त कर लिया है। अमायं कुव्वाणे-माया-छल-कपट नहीं करने काला / वियाहिए-कहा गया है / IV सूत्रार्थ : सः अहं ब्रवीमि, यथा अनगारः ऋजुकृत्, नियाग-प्रतिपन्नः अमायां कुर्वाण: